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आग की यादें

120 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
कैटेगरी: विश्व साहित्य
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87772-41-7
पृष्ठ: 136
अनुवादक: रेयाज़ उल हक़
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सिर के बल खड़ी दुनिया को सीधी करने की जद्दोजहद

‘एदुआर्दो गालेआनो को छापना दुश्मन को छापना है–– झूठ, उदासीनता और सबसे बढ़कर फरामोशी का दुश्मन। उनका शुक्रिया कि हमारे अपराध याद रखे जायेंगे। उनकी नजाकत, तबाह कर देनेवाली है, उनकी सच्चाई गुस्से से भरी हुई है।’

–जॉन बर्जर

‘हकीकत आपसे अच्छी चीजों को याद रखने और उन्हें लिखने के लिए कहती है। अगर लिखने के पेशे का कोई औचित्य है तो वह है हकीकत के चेहरे से मुखौटा हटाने में मदद की जाये और इसे उजागर किया जाये कि दुनिया कैसी है, कैसी थी और अगर हम इसे बदल देते हैं तो कैसी होगी।’

–एदुआर्दो गालेआनो

गालेआनो का लेखन साम्राज्यवाद के खिलाफ आलोचना और विद्रोह का लेखन है, जिसमें वे बड़ी सख्ती से इसके सभी कल–पुर्जों और सारे तौर–तरीकों की आलोचना पेश करते हैं। उनकी मुख्य किताबों में दिआस ई नोचेस दे आमोर ई दे गेर्रा (प्यार और जंग के दिन और रातें, डेज एण्ड नाइट्स ऑफ लव एण्ड वार), एल लिब्रो दे लोस आब्रासोस (आलिंगनों की किताब, द बुक ऑफ एम्ब्रेसेज), नोसोत्रोस देसीमोस नो (हम कहते हैं नहीं, वी से नो), लास पालाब्रास आंदाँतेस (चलते हुए शब्द, वाकिंग वर्ड्स), एल फुतबोल आ सोल इ सोंब्रा (धूप–छाँव में फुटबॉल, सॉकर इन सन एण्ड शैडो), पातास आरीबा : एस्कुएला देल मुंदो आल रेवेस (उलटी दुनिया की पाठशाला, अपसाइड डाउन : अ प्रीमियर फॉर द लुकिंग ग्लास वर्ल्ड), बोकास देल तिएंपो (वक्त की आवाजें, वॉयसेज ऑफ टाइम), एस्पेखोस (आईने, मिरर्स), लोस इखोस दे लोस दिआस (तारीख की औलादें, चिल्ड्रेन ऑफ द डेज) शामिल हैं।

गालेआनो को पढ़ते हुए यह अहसास बहुत साफ होता है कि शोषण और जुल्म की व्यवस्था हर जगह एक जैसी है और उनके लेखन में ही, यह बात भी उतनी ही शिद्दत से जाहिर होती है कि इस शोषण और जुल्म के खिलाफ प्रतिरोध भी पूरी दुनिया की अवाम की साझी विरासत है। गालेआनो जनपक्षधर और प्रतिबद्ध लेखक की एक मिसाल हैं–– जिन्होंने हमेशा जोखिम उठाया, एक के बाद एक साथियों की शहादतें देखीं लेकिन बराबरी पर आधारित एक जनवादी समाज के लिए अपनी लड़ाई से कभी नहीं हटे। इसीलिए, 13 अप्रैल 2015 को जब उनका निधन हुआ, तो पूरी दुनिया के जनसंघर्षों और जनपक्षधर बुद्धिजीवियों के बीच उदासी और दुख की एक लहर दौड़ गयी। एक आवाज, जो हमेशा उनके साथ खड़ी रही थी, मौत के पर्दे के पार, अन्धेरे और चुप्पियों से जिरह में अकेली पड़ गयी थी।

यहाँ उनके लेखन से एक चयन पेश है, जिसमें गालेआनो के सोचने के तरीके, उनकी विचारधारा और उनकी लेखन शैली का प्रधिनिधित्व मिलता है। संकलन में उनकी शुरुआती किताबों से लेकर उनकी अब तक प्रकाशित आखिरी किताब मुखेरेस (2014) से रचनाएँ शामिल की गयी हैं। इस संकलन के लिए मुख्य योगदान साथी पी– कुमार मंगलम का है, जो गालेआनो की किताब पातास आरीबा का हिन्दी अनुवाद कर रहे हैं और इस संकलन के लिए किताब का एक बड़ा हिस्सा अनुवाद करके मुहैया कराया है। इसी के साथ उन्होंने गालेआनो के मशहूर लेख ‘इन डिफेंस ऑफ वर्ड्स’ का अनुवाद भी किया है।

--रेयाजुल हक

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