शुरू में फ्योदोर ग्लादकोव इरकुत्स्क में समाजवादी क्रांतिकारी पार्टी की गतिविधियों में शामिल रहे, जहाँ से उन्हें निर्वासन की पीड़ा भोगनी पड़ी । उसके बाद 1906 में वे रूस की सामाजिक जनवादी पार्टी में शामिल हो गये और समर्पित होकर मजदूर वर्ग के ध्येय के लिए काम करने लगे । इस दौरान उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर स्कूल में पढ़ाया भी । 1917 की रूसी समाजवादी क्रान्ति के बाद लाल सेना में काम किया । समाचार पत्र ‘क्रास्नोय चेर्नाेमोरी’ का सम्पादन भी किया । 1921 में वे मास्को चले गये । वहाँ उन्हें एक फैक्ट्री स्कूल का प्रमुख नियुक्त किया गया । वे नोवी मीर (नयी दुनिया) पत्रिका के सचिव भी रहे । 1930 के दशक में उनका पहला प्रमुख उपन्यास ‘सीमेंट’ समाजवादी यथार्थवादी लेखन के लिए एक साहित्यिक मानक बन गया । अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने 1932 में स्थापित ‘समाजवादी यथार्थवादी सौंदर्यशास्त्र’ को और विकसित करने के लिए ‘सीमेंट’ के कुछ अंशों को फिर से लिखा ।
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एफ वी ग्लादकोव |
सीमेंट उपन्यास १९१७ का रूसी क्रांति के बाद का पहला उपन्यास माना जाता है। ये उपन्यास सच्ची घटनाओं पर आधारित मन जाता है।
सीमेंट की एक विशाल फैक्ट्री, जो युद्ध के कारण बंद हो गई थी। ३ साल बाद ग्लीब युद्ध से वापस आता है। घर न जानकर वो सीधा सीमेंट फैक्ट्री जाता है। फैक्ट्री को देख कर उसका दिल उदास हो जाता है। फैक्ट्री बंद पड़ी है। गेट टूटा हुआ है। फैक्ट्री में से जगह-जगह से लोगों ने समान चुरा लिया है। ग्लीब अब घर की तरफ जाता है। उसने सोचा "दाशा" उसकी पत्नी घर पर होगी। मुझे देख कर खुश होगी। उसका जोश के साथ स्वागत करेगी। ग्लीब जब घर पहुंचता है। तो दाशा घर से बाहर जाने के लिए तैयार थी। ग्लीब को देख कर उसने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं देती । तुम आराम करो। मैं महिला मोर्चे पर काम करने जा रही हूं।
ग्लीब सोचता है यहां पहले जैसा कुछ भी नहीं है। सब बदल गया है। सब दोबारा से ठीक करना होगा। ग्लीब पुराने दोस्तों से मिलने चला जाता है। उनसे मिल कर उनको पता चलता है कि किसी के पास भी भरपेट खाना नहीं है। पहनने को पूरे कपड़े नहीं है। हालात बहुत बुरे है। लोग चोरी करते है। आपस में लड़ते झगड़ते रहते है।
ग्लीब सोचता है। जब हमने युद्ध के मैचे पर अपनी जीत फतह की है। तो आर्थिक मोर्चे पर भी जीत हासिल करनी होगी। उसके मन के ख्याल आता है क्यों न सीमेंट फैक्ट्री को दोबारा शुरू किया जाए।
"ग्लीब इस बात को गहराई से जानता है कि मजदूर का सबसे जरूरी गुण है श्रम करने के उसकी क्षमता जिसके अभाव में उसके अंदर नैतिक और शारीरिक गिरावट आती है श्रम करना ही मानव जीवन की आधारशिला है। यह हवा की तरह जरूरी है।"
"चलो अपनी ताकत को वापस हासिल करते है , सावचुक । हम हारे जरूर है। लेकिन हार हमें जवाबी हमला करना सीखती है।"
सीमेंट उपन्यास नई अर्थनीति को कैसे लागू किया गया। उसको लागू करने में कितनी-कितनी परेशानी झेलनी पड़ी इस पर आधारित है। अभी कजाक नई आर्थिकनीति को लागू नहीं करने देते। फैक्ट्री को शुरू करने के काम में लगे लोगों के ऊपर हमला कर देते है। फैक्ट्री के लिए ईंधन जुटाने वाली रोपवे को नष्ट कर देते है। ग्लीब को दोबारा फिर हथियार उठाने पड़ते है। ग्लीब कज्जको को पहाड़ के पीछे तक धकेल देता है ।
मगर इतने से भी काम नहीं चलेगा , बुर्जवा परवर्ती के लोग अभी भी है , चूहों की तरह बिल में घुसे हुवे है । काम को करने नहीं देते , लालफ़ीतासही दफ्तरों में अभी भी काम कर रही है , जो पुराने ढर्रे पर काम कर रही है। सीमेंट की फैक्ट्री को चालू नहीं करने देती। नई आर्थिक नीति के रास्ते में अवरोधक बनी हुई है ।
"हमारे जूतों से सड़कों की धूल की बदबू आती है। कामरेड इकोनामिक काउंसिल के चेयरमैन और वे कील से जुड़े हुए है। हमारे हाथ राईफलों और हथौड़ी से परिचित है। एक कम्युनिस्ट के तौर पर तुम्हें यह बात समझनी चाहिए। तुम कम्युनिस्ट हो, लेकिन तुम्हें मजदूरों की नीति का कोई ज्ञान नहीं है। तुम्हें न तो बारूद की गंद का पता हैऔर न हीं मजदूरों के पसीने की। मुझे तुम्हारे तंन्र कोई परवाह नहीं है। तुम्हारे पास चूहों का झुंड है, जिन्होंने सोवियत रोटी पर अपने दांत तेज कर ली है, जो आसानी से मिल जाती है। तुमने हर चीज को अच्छी तरह से काटा और सुखाया है घण्टे और मिनट के हिसाब से-- अच्छी तरह से छुपाया है. लेकिन हमारे पास सूंघने की अच्छी ताकत है और अच्छे बुलडॉग के दांत भी है। "
क्रांति के बाद सांस्कृतिक क्रांति की जरूरत होती है । पुरानी मूल्य मान्यताए अभी भी लोगों में मौजूद है । महिलाओं को अभी भी उपभोग की वस्तु माना जाता है । दाशा ग्लीब से कहती है , सब कुछ बदल गया है , पुराना कुछ भी नहीं है , हमे भी बदलना होगा , ग्लीब अगर तुम खुद को नहीं बदलते हो हम एक साथ नहीं रह सकते , ग्लीब को ये बात समझ मे आ जाती है । दाशा के प्यार को फिर से पाना है तो अपने आप को बदलना होगा । दाशा अब पुरानी दाशा नहीं रही , अब वो महिला मोर्चे की लीडर है ।
"तुम अभी तक कितने गुलाम है ग्लीब ! आखिरकार, हमें भी अपने भीतर एक क्रांति की जरूरत होगी। हां, हमारे भीतर एक निर्मम ग्रहयुद्ध जैसा होना चाहिए। हमारी आदतों, भावनाओं, और पूर्वाग्रहो से ज्यादा कुछ भी तय और कठोर नहीं है, मुझे पता है कि तुम्हारे भीतर से उबल रही है, ईर्ष्या निरंकुशता से भी बदतर है। यह एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान का शोषण है, जिसकी तुलना केवल नरभक्षण से की जा सकती है, यही मैं तुम्हें बताना चाहती हूं ग्लीब-- तुम उसे भावना के साथ कभी दाशा के करीब नहीं पहुंच पाओगे-- तुम हार जाओगे"
रिव्यु दें