इस पुस्तक में उर्दू के दस महान कवियों को समझने और आज के सन्दर्भ में परखने का प्रयत्न है । साम्प्रदायिक शक्तियाँ हिन्दी और उर्दू का मेल–मिलाप नहीं चाहती हैं । भाषा उनके लिए जोड़ने का उपकरण नहीं बल्कि तोड़ने का हथियार है । इस हथियार का प्रयोग परा/ाीन भारत में अंग्रेज़ों ने सबसे पहले किया था । उन्होंने हिन्दी और उर्दू के बीच शत्रुता और फूट के बीज बोये । इस बीज को पल्लवित–पुष्पित करन का काम स्वतंत्र भारत में साम्प्रदायिक राजनीतिक दलों और /ाार्मिक कठमुल्लों ने किया । उन्होंने ईश्वर और अल्लाह के बीच दीवार खड़ी कर दी । हिन्दी और उर्दू के बीच बैरियर लगा दिया । लेकिन हमारे कालजयी कवियों ने भेद–भाव की हर दीवार तोड़ दी । किसी भी बैरियर को मानने से इनकार कर दिया ।
ऐसे ही कालजयी उर्दू कवियों पर एक Üाृंखला लिखने का विचार दिगम्बर भाई के मन मंे आया । जून 2019 में हुई पहली मुलाक़ात में उन्होंने प्रस्ताव रखा कि गार्गी प्रकाशन के लिए तरक्कीपसन्द शायरों के जीवन और कर्म पर नयी रचना की जाये । पहले–पहल पत्रिका के लिए काम शुरू हो गया । पाठकों ने पसन्द किया तो हौसला बढ़ा । लेकिन डर बराबर लगता रहा कि कहीं कोई भूल–चूक न हो जाए । एक बार तो ऐसा लगा कि लिख नहीं पाऊँगा । मैंने साथी से माफ़ी माँगते हुए कहा कि ‘नहीं लिख पा रहा हूँ, आप अंक मेरे लेख के बिना जारी कर दें ।’ उन्होंने कहा कि–– ‘जब तक आपका लेख नहीं आएगा, तब तक पत्रिका का अंक जारी नहीं होगा ।’ उनके भरोसे और पाठकों की हौसला–अफ़ज़ाई से हिम्मत बढ़ी और मैं जी–जान से काम में जुट गया । सभी साथियों और सु/ाी पाठकों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ ।
पुस्तक जैसी भी बन पड़ी है, आपके हाथों में है । आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी ।
विजय गुप्त,
11 जनवरी, 2022
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विजय गुप्त |
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