‘इन्सान का नसीबा’ कहानी 1957 में लिखी गयी थी । मिखाइल शोलोखोव ने कहानी की शुरुआत संयम और उदासी से की है, मानो वे पाठक को चेतावनी देना चाहते हैं कि यह कोई आसान कहानी नहीं है जिसे उन्हें बताना है । युद्ध के बाद के वसंत मेें वे झुके हुए कंधों और बड़े खुरदरे हाथों वाले एक लम्बे व्यक्ति अन्द्रेई सोकोलोव से मिले । उसने अपने सैनिक जीवन की कहानी लेखक से कह सुनायी । उसने बताया कि युद्ध के दौरान कैसे उसने उन यातनाओं और कष्टों को सहा जो कमजोर लोगों को तोड़ देते थे ––– लेकिन सोकोलोव घायल दिल के साथ अभी भी उत्सुक है जीवन के लिए । वह नन्हे वान्या के साथ जीवन साझा करने के लिए लालायित है, जो उसी की तरह युद्ध के चलते अनाथ हो गया है । अन्द्रेई सोकोलोव अपना मानवतावादी रूसी संस्कार अपने दत्तक पुत्र को देगा और वह लड़का अपने पिता की तरह ही अपने देश की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहेगा । इस कहानी पर आधारित सोवियत फिल्म ने उच्चतम अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया ।
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मिखाइल शोलोखोव |
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