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मरियल घोड़ा, दुर्बल सवार

60 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
कैटेगरी: विश्व साहित्य
भाषा: हिन्दी
पृष्ठ: 124
प्रकाशन तिथि:
अनुवादक: दिगम्बर
कुल बिक्री: 217
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इस किताब के बारे में  

लघु उपन्यास पेल हॉर्स, पेल राइडर (मरियल घोड़ा, दुर्बल सवार) का कथानक 1918–19 में फैली इन्फ्लुएंजा महामारी पर केन्द्रित है । यह अमरीकी उपन्यासकार कैथरीन ऐनी पोर्टर की विश्वविख्यात रचना है जो खुद उस महामारी का शिकार होकर मरते–मरते बची थी । 1939 में प्रकाशित यह लघु उपन्यास, दो ऐसे प्रेमियों की कहानी है जो विश्वयुद्ध के काल में घातक फ्लू वायरस की चपेट में आ जाते हैं । विश्वयुद्ध और महामारी की पृष्ठभूमि में लिखी गयी यह कहानी एक ही साथ रोमांटिक भी है और त्रासद भी । 


2019–2021 के बीच दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी ने जमकर तबाही मचायी । लाखों लोग मारे गये और करोड़ों लोग बीमार होने के बाद बीमारी से पैदा हुई शारीरिक विकृति, मानसिक आघात और सामाजिक–आर्थिक समस्याओं से पीड़ित हैं । उनकी जिन्दगी बदहाल हो रही है । मौजूदा समय की इस महामारी से दुनिया अभी उबर नहीं पायी है । निश्चित तौर पर लोगों की बेहाल जिन्दगी की दास्तान बयान करने वाले साहित्य लिखे जायेंगे, जिससे आनेवाली पीढ़ियाँ हमारे इस दुख–तकलीफ से रूबरू होंगी । इस मानी में भी मरियल घोड़ा, दुर्बल सवार उपन्यास उस दौर का एक दस्तावेजी प्रस्तुतीकरण माना जा सकता है । इसलिए आज इस उपन्यास को पढ़ना और उस दौर की घटनाओं से गुजरना और अधिक प्रासंगिक तथा जरूरी हो गया है ।


सौ साल पहले स्पेनिश इन्फ्लुएंजा से जितने लोग मारे गये थे, उनकी कुल संख्या प्रथम विश्व युद्ध में मारे गये 1.7 करोड़ लोगों और द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गये 6 करोड़ लोगों के कुल योग से भी ज्यादा थी । यह मानव इतिहास की सबसे भयावह त्रासदी थी । लेकिन इन दोनों त्रासद घटनाओं में से किसको कितना याद किया गया, इसका अन्दाजा इसी एक तथ्य से लगाया जा सकता है––  दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी कैटलॉग तैयार करने वाले वेबसाइट, वर्ल्डकैट ने अभी तक प्रथम विश्व युद्ध पर चालीस से अधिक भाषाओं में लगभग 80,000 पुस्तकों और स्पैनिश फ्लू पर पाँच भाषाओं में लगभग 400 पुस्तकों को सूचीबद्ध किया है । अविस्मरणीय युद्ध समाज की सामूहिक स्मृति में गहरी जड़ें जमा चुका है, जबकि लोग एक महामारी को याद करने के लिए तैयार नहीं हैं । जाहिर है कि शासक वर्ग अपने स्वार्थ के अनुरूप ही सचेतन तौर पर कुछ खास स्मृतियों को संजोता है और और कुछ को विस्मृति के गर्त में डाल देता है । स्पेनिश फ्लू की तरह ही कोरोना महामारी को भी हम भूल जायेंगे और किसी दूसरी मानवनिर्मित आपदा की बाट देखेंगे ।


प्रथम विश्वयुद्ध और स्पेनिश फ्लू की पृष्ठभूमि में रचित यह उपन्यास एक अजीबो–गरीब सपने से शुरू होता है, जो उपन्यास के शीर्षक की ओर संकेत करता है । सपने में एक मरियल घोड़े पर बैठा दुर्बल सवार नायिका मिराण्डा का पीछा करता है, जो “मौत और शैतान” का प्रतीक है । वह दु%स्वप्न से जागती है, लेकिन उसे पता नहीं है कि वह फ्लू से संक्रमित हो गयी है ।


इस उपन्यास की कहानी खुद उपन्यासकार पोर्टर की आपबीती है जो 1918–19 महामारी के दौरान 28 वर्ष की थीं और डेनेवर में ‘रॉकी माउण्टेन न्यूज’ के लिए काम कर रही थीं । वे खुद एक युवा सैनिक से प्रेम करती थीं, जो विदेश में युद्ध के मोर्चे पर जाने की तैयारी कर रहा था । जब वे बीमार पड़ीं, तो युवा सैनिक ने उनके किराये के कमरे में तब तक उनकी देख–रेख की, जब तक कि उनके सम्पादक ने अस्पताल में भर्ती कराने का इन्तजाम नहीं कराया । महामारी के चलते अस्पताल में इतनी भीड़–भाड़ थी कि पोर्टर को नौ दिनों के लिए दालान में एक स्ट्रेचर पर लिटाकर उनका इलाज किया गया था । जब वे ठीक हो गयीं, तो उनको पता चला कि उनके प्रेमी की फ्लू से मृत्यु हो गयी । लेखिका ने अपने निजी अनुभव को नायिका मिराण्डा और उसके प्रेमी एडम के माध्यम से अभिव्यंजित किया है ।


नायिका मिराण्डा विश्वयुद्ध के दौरान फैलायी जा रही युद्धोन्माद और अन्धराष्ट्रवाद की संस्कृति को नापसन्द करती है, जिसे पोर्टर ने एक दिमागी वायरस के रूप में दर्शाया है जो महामारी की तरह फैल रहा है । युद्ध बॉण्ड बेचने वाले कुछ लम्पट और निकम्मे लोग मिराण्डा पर बॉण्ड खरीदने के लिए दबाव डालते हैं जिसे खरीद पाने में वह असमर्थ हैय उसके अखबार की एक दूसरी महिला रिपोर्टर भी इस बात से चिन्तित है कि अगर वह बॉण्ड खरीदने के लिए पैसे नहीं जुटा पायी तो उसकी नौकरी चली जाएगी । उपन्यास में दर्शाया गया है कि युद्ध के पक्ष में माहौल बनाने और समर्थन जुटाने का प्रयास किस तरह उस दौर की जिन्दगी में हर जगह अपना प्रभाव छोड़ता है । युद्ध की बात आने पर अलग–अलग लोग उसके समर्थन और विरोध में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं ।


युद्ध और फ्लू दोनों ही मिराण्डा के जीवन में एक खतरे के रूप में आते हैं । मिराण्डा को एडम से प्यार है, जो टेक्सास का निवासी है और युद्ध में जाने से पहले सैनिक प्रशिक्षण ले रहा है । वे दोनों लगभग 10 दिनों तक आपस में घुलते–मिलते हैं और एक दूसरे को गहराई से महसूस करते हैं । उनके शुरू के कुछ दिन रोमांस और उमंग में बीते–– जाज पर नृत्य करना, नाटक देखने जाना, भूगर्भ संग्रहालय के चारों ओर घूमना, शहर से बाहर निकल कर इधर–उधर घूमना । लेकिन वे दोनों यह जानते हैं कि उनका आपसी स्नेह थोड़े दिन की बात है क्योंकि एडम जल्द ही युद्ध के मोर्चे पर जाने वाला है । हालाँकि उससे पहले ही अचानक उनका सामना इन्फ्लुएंजा के वायरस से होता है ।


मिराण्डा ऐसा महसूस करती है कि अगर एडम युद्ध के मोर्चे पर जाने को बाध्य नहीं होता तो वह उससे कितना ज्यादा प्यार करती । उनके बीच युद्ध की भयावहता और युद्धोन्मादी माहौल में उस दौर के हालात पर खूब बातें होती हैं । मिराण्डा ने एडम से कहा, जिसे बीमारी के बारे में प्रशिक्षण के लिए वापस भेजा गया है, “यह प्लेग जैसी लगती है, मध्य युग की कोई बीमारी । क्या तुमने कभी एक साथ इतना ज्यादा अन्तिम संस्कार होते देखा था ?” एडम ने जवाब दिया “कभी नहीं । खैर, हम अपना दिमाग मजबूत बनायें और इससे बचने की उम्मीद करें । मुझे अचानक चार दिन और मिल गये हैं और हमें अपने पैरों के नीचे घास का एक तिनका भी सलामत नहीं रहने देना है ।” इसके साथ ही वे सड़क पर चहलकदमी करने और डांस करने जाने का प्लान बनाते हैं ।


धीरे–धीरे, फ्लू उसके शरीर में अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है, भले ही उसका मन युद्ध में लगा रहता है । जिस रात वह कई दिनों से महसूस हो रही बीमारी से बेहोश हो जाती है, एडम और मिराण्डा एक साथ एक नाटक में जाते हैं, जिसकी उसे समीक्षा करनी होती है । यह एक उबाऊ नाटक है, लेकिन तीसरे अंक से पहले, एक चन्दा माँगनेवाला मंच पर आता है । वह एक लम्बा उबाऊ भाषण देता है, जिसमें देशभक्ति की बड़ी–बड़ी बातें होती हैं और आखिर में वह लोगों से युद्ध बॉण्ड खरीदने की अपील करता है । इन सब के प्रभाव में मिराण्डा की बीमारी बढ़ जाती है, उसका सिर दर्द असहनीय हो जाता है ।


नाटक के बाद वे एक रेस्तराँ में जाते हैं जहाँ वह बेहोश हो जाती हैय जब वह होश में आती है, तो उसे पता चलता है कि वह फ्लू का शिकार हो गयी है और एडम उसके किराये के कमरे में उसकी देखभाल कर रहा है । वह आखिरी बार उसके साथ होता है । फिर मिराण्डा को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया जाता है जहाँ दर्द और बुखार से पीड़ित वह भयावह सपने देखती है । इन्फ्लुएंजा से ग्रसित नायिका अवसाद से ग्रस्त है और वह केवल तभी सहज होती है जब बेहोश हो जाती है । बार–बार भावनात्मक उद्वेग और बुखार के दौरान आने वाले भयावह सपनों का यहाँ अत्यन्त मार्मिक चित्रण किया गया है । लम्बे इलाज के बाद मिराण्डा धीरे–धीरे ठीक हो जाती है, उसे पता चलता है कि युद्ध समाप्त हो गया है लेकिन इन्फ्लुएंजा महामारी की चपेट में आकर उसके प्रेमी एडम की मृत्यु हो गयी है । महामारी से बच जाने के बाद भी मिराण्डा उसके आघात से मुक्त नहीं हो पाती, लेकिन जल्दी ही वह खुद को बदहवासी से बाहर निकालती है ।


हालाँकि युद्ध और महामारी दोनों ही उस दौरान दुनिया की जनता को मौत की ओर धकेल रहे थे, लेकिन उपन्यास के चरित्रों के बीच युद्ध कहीं ज्यादा चर्चा का विषय है । एडम, जो एक सैनिक है, फ्लू को बहुत हल्के ढंग से लेता है और इसे “मजेदार नयी बीमारी” कहता हैं, जिसकी चपेट में आकर बैरकों में जवान मर रहे हैं । मिराण्डा जिस अखबार के दफ्तर में काम करती है वहाँ शायद ही कोई फ्लू की चर्चा करता है । जब मिराण्डा संक्रमित हो जाती है, तभी वे हर रोज बड़ी संख्या में अन्त्येष्टि, रात में एम्बुलेंस की भाग–दौड़, और शहर में लॉकडाउन को लेकर गम्भीरता से चर्चा करते हुए पाये जाते हैं ।


उपन्यास में मृत्यु, जीवन और अकेलापन का बेहतरीन चित्रण है । मिराण्डा पहले ही अपने परिवार में कई लोगों को “मरियल सवार” के हाथो गवाँ चुकी है, उसके जीवन की आशा एडम है जिसे वह युद्ध में नहीं जाने देना चाहती है । वह एक गीत गाती है–– “मरियल घोड़ा, दुर्बल सवार, मेरे प्रेमी को दूर ले गया ––– ओह, एक गायक को विलाप करने के लिए छोड़ गया” । यह गीत मिराण्डा के जीवन में आसन्न मृत्यु और अकेलेपन की ओर इंगित करता है । फिर भी उसकी जीने की इच्छा ही है, जिसके चलते बीमारी की हालत में उसकी देखभाल में लगे अपने प्रेमी से आग्रह करती है कि “मुझे सोने से डर लगता है, मैं फिर जाग नहीं पाउँगी । मुझे सोने मत दो, एडम ।”


लेकिन फ्लू से लम्बे संघर्ष के दौरान उसे मृत्यु का बहुत करीबी अहसास होता है, जिससे जीवन के प्रति उसका नजरिया बदल जाता है और मृत्यु उसे अधिक सुखद लगने लगती है । मौत से मुठभेड़ करने के बाद फैशनेबल मिराण्डा जर्जर शरीर और उलझे दिमाग के साथ एक ऐसी दुनिया में वापस आ गयी, जहाँ एडम नहीं था, “कोई रोशनी नहीं थी, शायद फिर कभी रोशनी न हो ––– ।”


मिराण्डा की मकान मालकिन मिस हॉबे जिससे उसका बहुत ही आत्मीय सम्बन्ध था, वह मिराण्डा को फ्लू होने का पता लगते ही भयभीत हो गयी । उसने एडम को धमकी दी कि अगर उसके लिए जल्दी एम्बुलेंस नहीं आयी तो वह मिराण्डा को सड़क पर फेंक देगी, क्योंकि उसकी बीमारी ने पूरे घर के लिए खतरा पैदा कर दिया । दूसरी ओर मिराण्डा के अखबार का सिटी एडिटर बिल ने उसे सांत्वना दी, डॉक्टर, नर्स, एम्बुलेंस और अस्पताल के इन्तजाम का वादा किया । मिराण्डा के ठीक होने के बाद चुक और मैरी अस्पताल में उससे मिलने आयी, उसके लिए फूल, उसके शुभचिन्तकों के पत्र लायी और उसके घर तक साथ गयीं । ऐसे व्यवहार कोविड–19 के दौरान भी खूब देखने को मिले जहाँ एक तरफ घोर उपेक्षा और अमानवीय व्यवहार देखने को मिला, दूसरी ओर लोगों ने जान पर खेल कर पीड़ितों की मदद की ।


हमारे यहाँ कोरोना महामारी की चपेट मंे आये लोगों के साथ उनके पड़ोसियों और रिश्तेदारों तक ने अपराधी की तरह व्यवहार किया । पड़ोसियों ने इन परिवारों का बहिष्कार कर दिया, कुछ को नौकरी से निकाल दिया गया और दुकानदारों ने उन्हें सामान देने से भी मना कर दिया । दिल्ली के एक अपार्टमेंट के लोगों ने कोरोना मरीजों की सेवा करनेवाली नर्सों को अपने पड़ोस में रहने से मना कर दिया था । परिवार के लोगों ने भी डर के मारे कोरोना पीड़ितों से किनारा किया और उन्हें अस्पताल से वापस लाने को तैयार नहीं हुए । सामाजिक भय और असुरक्षा की ऐसी ही हालत के चलते हैदराबाद में कोरोना से बचकर वापस आये लगभग 50 लोगों को दुबारा अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था ।


उपन्यास का अन्त इस उम्मीद के साथ होता है–– “अब कोई और युद्ध नहीं, अब कोई और महामारी नहीं, केवल विराट तोपों का मुँह बन्द होने के बाद का सन्नाटाय प्रेत छायाओं से मुक्त घर, खाली सड़कें और आनेवाले कल की ठण्डी रोशनी का अन्त । अब हर चीज के लिए भरपूर समय होगा ।”
इतिहासकार अल्फ्रेड डब्ल्यू क्रॉस्बी ने पेल हॉर्स, पेल राइडर को इन्फ्लुएंजा से होने वाली पीड़ा का ऐसा असाधारण चित्रण माना कि उन्होंने 1918 की महामारी पर लिखी अपनी पुस्तक लेखिका कैथरीन ऐनी पोर्टर को समर्पित की थी ।
 

–– अनुवादक

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