दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पूरी दुनिया में समाजवाद और कम्युनिज्म की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी । सोवियत संघ और चीन में समाजवाद सफलता की नयी ऊँचाइयाँ छू रहा था और वियतनाम की जनता साम्राज्यवाद के खिलाफ बहादुरी से लड़ रही थी । ऐसे में पूँजीवादी दुनिया का सरगना संयुक्त राज्य अमरीका को कम्युनिज्म का डर सताने लगा । इससे निपटने के लिए रिपब्लिकन सीनेटर जोसफ मैकार्थी ने वहाँ आतंक का राज कायम किया । आम लोगों के हक की आवाज उठाने तथा परमाणु निशस्त्रीकरण और इंसाफ की बात करने वालों को वामपंथी या कम्युनिस्ट बताया जाने लगा । उन्हें अमरीका का दुश्मन करार देने और बदनाम कर के समाज से अलग–थलग करने की सरकारी नीति अपना ली गयी । हर इंसाफ पसन्द व्यक्ति को सन्देह से देखा जाने लगा । इस बेबुनियाद बात का प्रचार किया गया कि छात्र, शिक्षक, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, संगीतकार, अभिनेता आदि अमरीकी सरकार को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने का व्यापक षड्यंत्र कर रहे हैं । मीडिया ने इस मिथ्या प्रचार में सरकार का साथ दिया । अमरीकी सरकार के विरोध को देश का विरोध बताया जाने लगा । यूएपीए की तरह के पैट्रियाट और अन्य काले कानूनों के तहत तमाम बुद्धिजीवियों–– वैज्ञानिकों, फिल्मकारों, शिक्षाविदों को निशाने पर लिया गया । इस तरह खुद को आजादी की जमीन कहने वाले अमरीका ने नागरिक स्वतंत्रता को संकुचित कर दिया । इस दौर में अल्बर्ट आइंस्टीन, बर्टाेल्ट ब्रेख्त, एलन गिंसबर्ग, चार्ली चैपलिन, आर्थर मिलर, हॉवर्ड फास्ट, थॉमस मान, जैसे महान वैज्ञानिक, और बुद्धिजीवी भी मैकार्थीवाद के शिकार हुए । इस उपन्यास में हॉवर्ड फास्ट ने अपने अनुभवों के आधार पर उस दौर के अमरीकी समाज की त्रासद कथा बुनी है ।
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*सिलास टिंबरमेन*
उषा नौटियाल जी की अनुवाद की हुई किताब– *पुल बनाने वाले की कहानी* पढ़ी थी। मनोविज्ञान पर एक शानदार किताब है। हिटलर के अत्याचारों की एक दास्तान
इत्तेफ़ाक से उषा जी से मिलने का मौका मिला। बातों ही बातों में सिलास टिंबरमेन किताब का जिक्र होने लगा। उन्होंने बताया कि अनुवाद के दौरान पढ़ते हुवे ही उन्हें किताब बहुत अच्छी लगी थी।
किताब आज के मौजूदा दौर के लिए बहुत प्रासंगिक है। 1950 में अमरीकी सरकार अपने देश के प्रगतिशील नागरिकों के खिलाफ झूठा प्रचार कर रही थी। उनको पकड़ कर जेल में डाल रही थी। जो भी सरकार के खिलाफ बोलता। उसी पर अभियोग लगा कर जेल भेज देती थी।
उसी तरह के दौर से हमारा देश भी गुजर रहा है। इसी लिए ये किताब महत्वपूर्ण हो जाती है। सिलास टिंबरमेन किताब का मुख्य पात्र है। जो दिखने में बहुत साधारण है। सिलास किसी भी तरह के लफड़े में नहीं पड़ना चाहता। सिलास अपने बच्चों के साथ जिंदगी बिताना चाहता है। अपने परिवार से प्यार करता है। पढ़ना और पढ़ाना उसे अच्छा लगता है। वह सभी तरह के विचारों से अपने छात्रों को अवगत कराना चाहता है। एक छोटी से तमन्ना जो किसी भी व्यक्ति के अंदर हो सकती है। उस तमन्ना के जीना चाहता है।
मगर सिलास और उसकी पत्नी मारिया को विद्यालय से निकाल दिया जाता है। रात को उसके घर पर पेट्रोल बम और पत्थर फेंके जाते है। जिससे उसके बेटे को गंभीर चोट पहुंचती है। जैसे ही वो अपने बेटा को अस्पताल से ले कर घर पहुंचता है। गिरफ्तार कर लिया जाता है।
अमेरिका की सरकार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपने देश के नागरिकों को एक झूठा एहसास कराने के नाम पर , एक नागरिक सुरक्षा अभियान चलती है। जैसे भारत में हर घर तिरंगा अभियान, जो उसका सदस्य नहीं बनता उसको देश की सुरक्षा के लिए खतरा मानती है।
ये ऐसा ही है जैसे भारत में अगर कोई बी जे पी, को पसंद नहीं करता, हिन्दुओं को खतरे में नहीं मानता, मुसलमानों को आतंकवादी नहीं मानता, धर्म में ज्यादा रुचि नहीं दिखता, उनको देश के लिए खतरा बताया जाता है।
सिलास टिम्बरमेन के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। जिसने जूरी के सामने, एटम बम को मानवता के लिए खतरा बताया कम्युनिस्ट होने से इनकार किया । इन दो बातों को आधार मान कर उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जाता है। सिलास को झूठे गवाहों के दम पर सरकार के खिलाफ षडयंत्रकारी, ताकत के दम पर सरकार को उखाड़ने वाला मानती है।
" अगर मैं किसी चीज के बारे में सोचता हूं, और उस पर यकीन करता हूँ, और तब भी मैं चुप रहूँ, तो ये मेरे विवेक का सबसे अहम मसला है।"
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