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सिलास टिम्बरमैन

300 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
कैटेगरी: विश्व साहित्य
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 978-93-94061-47-7
पृष्ठ: 276
संस्करण: 1
प्रकाशन तिथि:
अनुवादक: उषा नौडियाल
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दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पूरी दुनिया में समाजवाद और कम्युनिज्म की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी । सोवियत संघ और चीन में समाजवाद सफलता की नयी ऊँचाइयाँ छू रहा था और वियतनाम की जनता साम्राज्यवाद के खिलाफ बहादुरी से लड़ रही थी । ऐसे में पूँजीवादी दुनिया का सरगना संयुक्त राज्य अमरीका को कम्युनिज्म का डर सताने लगा । इससे निपटने के लिए रिपब्लिकन सीनेटर जोसफ मैकार्थी ने वहाँ आतंक का राज कायम किया । आम लोगों के हक की आवाज उठाने तथा परमाणु निशस्त्रीकरण और इंसाफ की बात करने वालों को वामपंथी या कम्युनिस्ट बताया जाने लगा । उन्हें अमरीका का दुश्मन करार देने और बदनाम कर के समाज से अलग–थलग करने की सरकारी नीति अपना ली गयी । हर इंसाफ पसन्द व्यक्ति को सन्देह से देखा जाने लगा । इस बेबुनियाद बात का प्रचार किया गया कि छात्र, शिक्षक, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, संगीतकार, अभिनेता आदि अमरीकी सरकार को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने का व्यापक षड्यंत्र कर रहे हैं । मीडिया ने इस मिथ्या प्रचार में सरकार का साथ दिया । अमरीकी सरकार के विरोध को देश का विरोध बताया जाने लगा । यूएपीए की तरह के पैट्रियाट और अन्य काले कानूनों के तहत तमाम बुद्धिजीवियों–– वैज्ञानिकों, फिल्मकारों, शिक्षाविदों को निशाने पर लिया गया । इस तरह खुद को आजादी की जमीन कहने वाले अमरीका ने नागरिक स्वतंत्रता को संकुचित कर दिया । इस दौर में अल्बर्ट आइंस्टीन, बर्टाेल्ट ब्रेख्त, एलन गिंसबर्ग, चार्ली चैपलिन, आर्थर मिलर, हॉवर्ड फास्ट, थॉमस मान, जैसे महान वैज्ञानिक, और बुद्धिजीवी भी मैकार्थीवाद के शिकार हुए । इस उपन्यास में हॉवर्ड फास्ट ने अपने अनुभवों के आधार पर उस दौर के अमरीकी समाज की त्रासद कथा बुनी है ।

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