अनुवाद : रेयाज उल हक
सवालों की किताब को एक नये नजरिये से देखा जाना चाहिए। बच्चों की मासूमियत और बड़ी उम्र के तजुर्बे को एक साथ पिरोने वाले इसमें ऐसे सवाल दिये गये हैं जो सुलझाए जाने के लिए नहीं बने हैं। ये बने बनाये इकहरे जवाबों की तानाशाही को खारिज करते हैं और कल्पना और सपनों की एक नयी रंग–बिरंगी दुनिया की हिमायत करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ये सवाल अबूझ हैं और न ही इसका मतलब यह है कि इनमें कोई आध्यात्मिक अटकल छिपी है। हमारे आसपास की दुनिया से लिये गये बिम्बों और जानी–पहचानी चीजों को लेकर बनायी गयी ये कविताएँ किसी आध्यात्मिक अटकल के लिए कोई जगह नहीं छोड़तीं। वे बस इसकी गुजारिश करती हैं कि सवालों पर नये सिरे से सोचा जाये और जवाब तक पहुँचने के बने बनाये रास्तों की आदत को छोड़ा जाये।
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पाब्लो नेरुदा |
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