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मरुस्थल

40 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
कैटेगरी: विश्व साहित्य
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87772-31-X
पृष्ठ: 128
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यह उपन्यास उस जमाने का है, जब रूस के मजदूर–किसान ने निरंकुश जारशाही का तख्ता उलटकर सोवियत गणराज्य की स्थापना की थी। लेकिन सर्वहारा के वर्ग शत्रु पूरी तरह से खत्म नहीं हुए थे। वे छिपकर सोवियत सत्ता पर हमला कर रहे थे और उसे बदनाम करने की साजिश रचते रहते थे। जब उच्च वर्ग के शोषक आमने–सामने की लड़ाई हार गये तो वे लाल गार्डों का ड्रेस पहनकर जनता को लूटने लग गये थे। इसी तरह की लूट में चारी हसन ने अपना परिवार खो दिया। वह बदले की भावना से लाल सेना के साथ आ खड़ा हुआ। लेकिन बाद में किस तरह उसने व्यक्तिगत दुश्मन से बदले की भावना से ऊपर उठकर वर्गीय पक्षधरता हासिल की और वर्ग शत्रु के खिलाफ सामूहिक लड़ाई में शामिल हो गया, यही इस किताब की विषयवस्तु है। 

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