प्रकाशक की ओर से
उन्नीसवीं शताब्दी के महान रूसी गद्यकारों के अग्रज निकोलाई गोगोल विश्व–साहित्य के अमिट हस्ताक्षर हैं। रूसी साहित्य में काल्पनिक, रूमानी और असाधारण घटनाओं व पात्रों के आदर्शीकरण और आलंकारिक चित्रण की जो पुरानी परिपाटी चली आ रही थी, उसे पूरी तरह नकारते हुए गोगोल ने अपनी रचनाओं में सामाजिक जीवन की सच्ची और स्वाभाविक छवि अंकित की। इसी के साथ रूसी साहित्य के एक नये युग का आरम्भ हुआ। उनके परवर्ती रचनाकारों ने समाज की नग्न सच्चाईयों की ओर उत्तरोत्तर अपना ध्यान केन्द्रित किया और आम जनता के जीवन को साहित्य का प्रतिपाद्य बनाया।
गार्गी प्रकाशन की ओर से हिन्दी के सुधि–पाठकों को विश्व–साहित्य की अनमोल धरोहर से परिचित कराने के क्रम में हम गोगोल की सुप्रसिद्ध कहानी -- ‘तस्वीर’ का प्रकाशन कर रहे हैं। इस कहानी के केन्द्र में एक दुष्ट सूदखोर की तस्वीर है, जिसे चित्रकार ने निर्मम अलगाव और बिना किसी सहानुभूति के बनाया था। स्वयं चित्रकार के शब्दों में: ‘‘मैंने उसका चित्र घोर अरुचि से बनाया था और मुझे अपने काम के प्रति तनिक भी आकर्षण नहीं था। मैंने अपनी भावनाओं को दबाने की और मेरी आत्मा में जो घृणा थी उसका दमन करके उसका वैसा ही चित्र बनाने की चेष्टा की जैसा कि वह जीवन में सचमुच था। वह कोई कलाकृति नहीं थी, और यही कारण है कि जो लोग भी उसे देखते हैं वे जिन भावनाओं से प्रभावित होते हैं वे बैचेन, परेशान भावनाएँ होती हैं। कलाकार की भावनाएँ नहीं होतीं ...’’
यह तस्वीर सबसे पहले अपने रचनाकार के लिए ही अनिष्टकारी साबित होती है। जिसका आभास होने पर चित्रकार उसे अपने पास से हटा देता है। बाद में घोर पश्चाताप और प्रायश्चित के बाद ही, वह उस दुरात्मा के कुप्रभाव से मुक्त होता है और अपनी आत्मा को निष्कलंक और मन को निर्मल बना पाता है। आगे चलकर वह तस्वीर एक आदमी से दूसरे आदमी के पास पहुँचती है और उनके मन में बेचैनी पैदा करती है तथा लोगों के हृदय में दूसरों के प्रति घृणा, ईर्ष्या और उत्पीड़ित करने की दुष्टतापूर्ण इच्छा पैदा करती है। इस तस्वीर के विनाशकारी प्रभाव के चलते इस कहानी के केन्द्रीय चरित्र, एक प्रतिभावान युवा चित्रकार का अधोपतन होता है और अन्तत: उसकी जिन्दगी तबाह हो जाती है।
आज हमारे देश और पूरी दुनिया के जनमानस में मूल्यहीनता, स्वार्थपरता और क्षुद्रता का अनर्थकारी प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है और प्रतिगामी शक्तियों द्वारा नाना प्रकार के मानवद्वेषी विचारों–भावनाओं को महिमा–मण्डित करने का सचेत प्रयास हो रहा है। ऐसे समय में, मनुष्यता की प्रतिष्ठा के लिए दुनिया–भर के मनीषियों के संघर्ष और सृजन की अनमोल विरासत को सामने लाना, उसे जनसुलभ बनाना पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। गोगोल की कहानी--‘तस्वीर’ का प्रकाशन इसी दिशा में एक विनम्र प्रयास है।
पाठकों से आग्रह है कि वे इस पुस्तक के सम्बन्ध में अपनी बेबाक राय और सुझावों से हमें अवश्य अवगत करायें।
-- गार्गी प्रकाशन
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निकोलाई गोगोल |
All stories by this author are very good
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