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फिदेल : एक निजी शब्द चित्र (फ्री पीडीएफ)

10 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 8187772182
पृष्ठ: 24
कुल बिक्री: 1344
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प्रकाशक की ओर से

फिदेल कास्त्रो रुज का जन्म भूतपूर्व ओरिएण्ट प्रान्त के बाइरन गाँव में 13 अगस्त,1926 को हुआ था। उनका परिवार खुशहाल जमीन्दार परिवार था। उन्होंने सेण्टीयागो डी क्यूबा और हवाना स्थित अभिजात कैथोलिक प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा पायी और 1950 में हवाना विश्वविद्यालय के लॉ स्कूल से स्नातक की डिग्री ली।

10 मार्च, 1952 को फल्गेंसियो बातिस्ता द्वारा तख्तापलट के बाद कास्त्रो अमरीका समर्थित बातिस्ता तानाशाही के खिलाफ एक क्रान्तिकारी संगठन बनाने और आम बगावत की तैयारी में लग गये। 26 जुलाई, 1953 को उन्होंने सेण्टीयागो डी क्यूबा स्थित मोनकाडा सैनिक गैरीसन के विरुद्ध एक असफल आक्रमण को संगठित किया और उसका नेतृत्व किया। अपने दो दर्जन से ज्यादा साथियों के साथ वे पकड़ लिये गये, उनपर मुकदमा चला और उन्हें जेल में डाल दिया गया। मोनकाडा हमले के दौरान और तत्काल बाद बातिस्ता की सेना ने 60 से भी ज्यादा क्रान्तिकारियों की हत्या की। जेल में बिताये दिनों में कास्त्रो ने मुकदमे के दौरान अपने बचाव में दिये गये भाषणों को सम्पादित करके ‘इतिहास मुझे सही साबित करेगा’ शीर्षक पर्चा तैयार किया, जिसकी लाखों प्रतियाँ बाँटी गयी और जो 26 जुलाई आन्दोलन का कार्यक्रम बन गया।

हालाँकि उन्हें 15 सालों के कारावास की सजा सुनाई गयी थी लेकिन बढ़ते जनान्दोलन के चलते उन्हें और उनके साथियों को 22 महीने के बाद ही मई, 1955 में रिहा कर दिया गया।

7 जुलाई, 1955 को कास्त्रो मैक्सिको चले गये जहाँ क्यूबा में सशस्त्र क्रान्ति के उद्देश्य से उन्होंने गुरिल्ला अभियान का संगठन करना शुरू कर दिया। 2 दिसम्बर, 1956 के दिन केबिन क्रूजर ग्रानमा पर सवार अपने 81 साथियों के साथ जिनमें उनके भाई राउल, चे ग्वेरा, केमिलो सीनपफुगोस, जुआन अलमीडा और जीसस मोण्टाने शामिल थे, कास्त्रो क्यूबा के तट पर पहुँचे। अगले 2 सालों तक कास्त्रो ने 26 जुलाई के आन्दोलन के केन्द्रीय नेतृत्व की जिम्मेदारी सम्भालने के साथ–साथ विद्रोही सेना की कार्रवाइयों को भी निर्देशित किया। शुरुआती असफलता के बाद गुरिल्ला अपनी शक्ति का पुनर्गठन करने में सफल रहे और 1958 के अन्तिम दिनों तक संघर्ष को सिएरा माएस्त्रा पहाड़ियों से शुरू करके पूरे द्वीप पर सफलतापूर्वक फैला दिया।

1 जनवरी, 1959 को बातिस्ता क्यूबा छोड़कर भाग गया। कास्त्रो द्वारा किये गये एक आह्वान की प्रतिक्रिया स्वरूप लाखों क्यूबाइयों ने एक आम बगावत और आम हड़ताल शुरू कर दी जिसने क्रान्ति की जीत पर मुहर लगा दी।

प्रस्तुत पुस्तिका क्यूबाई क्रान्ति के इसी महानायक, फिदेल कास्त्रो के व्यक्तित्व के बहुत से अनछुए पहलुओं को उद्घाटित करती है, जिन्हें गेब्रियल गार्सिया मार्क्वेज ने अपनी सशक्त लेखनी से जीवन्त किया है।

पुस्तिका के बारे में आपके सुझावों और विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

--गार्गी प्रकाशन

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गेब्रियल गार्सिया मार्ख्वेज गेब्रियल गार्सिया मार्ख्वेज

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