यह छोटी–सी पुिस्तका 1939 में छपरा (बिहार) के साहित्य–सेवक–संघ द्वारा प्रकाशित की गयी थी। इसके लेखक टी एन कुचुन्नी विमल कैरलीय हैं और इसका अग्रलेख जाने माने तरक्कीपसन्द शायर सज्जाद जहीर ने लिखा था। उस समय फासीवाद अपने चरम पर पहुँच गया था। दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने ही वाला था। हम देखते हैं कि इसे लेकर जो सम्भावनाएँ इस पुस्तिका में व्यक्त की गयी, वे काफी हद तक सच साबित हुर्इं। फासीवाद ने दूसरे विश्व युद्ध को बुलावा देकर दुनिया भर की जनता को संकट में डाल दिया। लेकिन जो आग उसने लगायी थी, वह खुद ही उसमें जलकर राख हो गया। समाजवादी रूस के नेतृत्व में बने संयुक्त मोर्चे ने फासीवाद का पूरी तरह विनाश कर दिया।
21वीं सदी में एक बार फिर दुनियाभर में नये फासीवादी अपने हथियार पैने कर रहे हैं। वैश्वीकरण के दौर में दुनिया का कोई भी देश इनकी मार से बाहर नहीं है। यह नया फासीवाद 20वीं सदी के फासीवाद से कहीं अधिक बर्बर और विनाशकारी है। इसके हमले से दुनिया को बचाने के लिए एक बार फिर से प्रगतिशील और लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट होना होगा। इसके लिए सबसे पहले फासीवाद को जानने–समझने की जरूरत है। उम्मीद है कि यह छोटी–सी पुस्तिका पाठकों को फासीवाद से परिचित कराने में सहायक होगी।
अनुक्रम
प्रकाशक की ओर से 5 फासीवाद और धर्म 32
अग्रलेख 7 फासीवाद और नस्लवाद 34
विषय प्रवेश 9 फासीवाद का अन्त और समाजवाद 36
समाज की प्रगति और फासीवाद 12 फासीवाद और क्रान्ति 38
इटली में फासीवाद का जन्म 21 फासीवाद की तानाशाही 28
फासीवाद का साथी नाजीवाद 25 उपसंहार 39
फासीवाद और नारीजाति 30
फोटो | नाम और परिचय | अन्य पुस्तकें |
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टी एन कुचुन्नी विमल कैरलीय |
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