“फ्रैंकफर्ट स्कूल के दिग्गज–– अडोर्नाे और होर्खाइमर ने वाकई अपने मनोगत नये कार्य का इस्तेमाल कर पूँजीवाद, उपभोक्ता समाज और सांस्कृतिक उद्योग की महत्वपूर्ण आलोचना गढ़ने में योगदान किया है । इसे नकारने के बजाय मैं सिर्फ इन आलोचनाओं को वस्तुगत सामाजिक दुनिया के सन्दर्भ में रखना चाहूँगा जिससे एक बहुत ही साधारण और व्यवहारिक सवाल निकलता है और जो अकादमिक दायरों में मुश्किल से उठाया जाता है कि अगर पूँजीवाद का नकारात्मक प्रभाव इतना स्पष्ट है तो उसके साथ क्या सुलूक किया जाये ?––– कई बार वे पूँजीवाद के कितने ही बड़े आलोचक क्यों न रहे हों, वे नियमित रूप से इस बात को स्थापित करते हैं कि इसका कोई विकल्प नहीं है, और अन्तत% इसके बारे में कुछ भी नहीं किया जा सकता है ।––– उनके ब्राण्ड का आलोचनात्मक सिद्धान्त अन्तत% पूँजीवादी व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि उनके मानदण्ड में समाजवाद उससे भी कहीं अधिक बुरा है । पूँजीवादी अकादमी के दूसरे फैशनपरस्त विमर्श की तरह ही वे भी ऐसी चीज का प्रस्ताव करते हैं जिसे हम एबीएस सिद्धान्त यानी ‘एनिथिंग बट सोशलिज्म’ (समाजवाद के अलावा कुछ भी) कह सकते हैं ।
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रोकहिल गेब्रियल |
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