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यह लेख रणधीर सिंह द्वारा ‘फाउण्डेशन फार सोशल रिस्पांसबिलिटी’ में नयी सहस्राब्दी के सिद्धान्तों पर आयोजित व्याख्यान श्रृंखला के एक हिस्से के तौर पर दिये गये वक्तव्य के कुछ अंशों का सम्पादित रूप है जिसे ‘परख’ ने लिबरेशन से साभार ग्रहण कर अंग्रेजी से अनुवाद कर प्रकाशित किया था। हम जिस रूप में इस आलेख को प्रकाशित कर रहे हैं वह ‘परख’ से ही लिया गया है और इसके लिए हम ‘परख’ परिवार के आभारी हैं।
हिन्दी की कुछ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के हाल के अंकों में प्रकाशित कुछ महत्वपूर्ण लेखों को हमने पुस्तिकाओं की एक श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है, यह पुस्तिका इसी परियोजना की एक कड़ी है। अलग–अलग विषयों पर केन्द्रित इन लेखों में एकमात्र समानता यह है कि ये कुछ अत्यन्त ही महत्वपूर्ण समस्याओं के बारे में सोचने के लिए हमें न केवल विवश करते हैं, बल्कि उसके लिए जरूरी विचारधारात्मक ढाँचा भी मुहैया करते हैं। इन्हें पुनर्प्रकाशित करने का हमारा उद्देश्य इन्हें पाठकों के एक अपेक्षाकृत बड़े दायरे तक पहुँचाना है इसमें वे पाठक भी शामिल हैं जो सम्बन्धित पत्रिका के पाठक समूह में शामिल न होने के चलते इन लेखों से वंचित रह गये होंगे।
–गार्गी प्रकाशन
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