वर्ष 2005 महान वैज्ञानिक आइन्सटीन की मृत्यु की 50वीं बरसी थी और साथ ही उनके युगान्तरकारी शोध पत्रों के प्रकाशन की शतवार्षिकी भी। सौ साल पहले प्रकाशित शोध पत्रों और उनकी निरन्तरता में विकसित वैज्ञानिक सिद्धान्तों की एक पूरी श्रृंखला के जरिये आइन्सटीन ने दिक्, काल, पदार्थ और गुरुत्वाकर्षण से सम्बन्धित पुरानी अवधरणाओं और चिंतन प्रणाली में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया। निश्चय ही, भौतिक जगत से सम्बन्धित इस नये दृष्टिकोण ने सामाजिक दर्शन को भी गहराई से प्रभावित किया।
20वीं सदी के इस महानतम वैज्ञानिक की स्मृति में गार्गी पुस्तिका श्रृंखला के तहत हम यहाँ दो लेखों का प्रकाशन कर रहे हैं जो ‘मंथली रिव्यू’ पत्रिका से आभार सहित उद्धृत हैं। पहला लेख आइन्सटीन के जीवन के सामाजिक–राजनीतिक सरोकारों से सम्बन्धित है। अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए विश्व–विख्यात और सर्वज्ञात होने के बावजूद आज की पीढ़ी के अधिकांश सुशिक्षित लोगों को भी आइन्सटीन के सामाजिक–राजनीतिक जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है। इस तथ्य पर परदा पड़ा हुआ है कि एक महान वैज्ञानिक होने के साथ–साथ आइन्सटीन के गहरे सामाजिक सरोकार भी थे तथा अपने समकालीन अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ, समाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए वे जीवन भर संघर्षरत रहे। इस लेख में आइन्सटीन के राजनीतिक जीवन की जीवन्त झांकी प्रस्तुत की गयी है।
दूसरा लेख ‘‘समाजवाद ही क्यों?’’ खुद आइन्सटीन की रचना है जिसमें उन्होंने पूँजीवाद के विकल्प के रूप में न्याय और समानता पर आधारित समाजवादी व्यवस्था का पुरजोर समर्थन किया है।
इस पुस्तिका की विषयवस्तु और कलेवर के बारे में पाठकांे के सुझाव और उनकी आलोचनाएं इस श्रृंखला को बेहतर बनाने में सहायक होंगी।
--गार्गी प्रकाशन
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