इसी पुस्तिका से--
मकड़ा है मालिक, पूँजीपति, शोषक, सट्टेबाजर, धनवान, भ्रष्टाचारी, धर्मगुरु, महन्त––हर तरह के परजीवी, हरामखोर, निरंकुश जिनके दबाव में हम तड़पते हैं, कष्ट झेलते हैं, जन–विरोधी कानून बनाने वाले जो हमें परेशान करते हैं, दुष्ट अत्याचारी जो हमें गुलाम बनाते हैं। वे सभी मकड़े हैं जो दूसरों के उ़पर जीवित रहते हैं, जो हमें पैरों से रौंदते हैं, जो हमारी तकलीफों की खिल्ली उड़ाते हैं और हमारे बेकार होते प्रयासों को देखकर मुस्कराते हैं।
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विलहम लिब्तकनेख्त |
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