अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने अपनी शर्तों पर ऋण मुहैया किया, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का ‘ढाँचागत समायोजन है’, जिसे आमतौर पर ‘नयी आर्थिक नीति कहा जाता है’ । आईएमएफ, विश्व बैंक और भारत सरकार ने यह प्रचारित किया कि यह ‘ढाँचागत समायोजन’ इन चीजों के लिए किया जा रहा है% व्यापार घाटे को नियन्त्रित करनाय विदेशी मुद्रा भंडार के अतिरिक्त कोष को पुनर्स्थापित करना और भविष्य में एक स्थाई देनदारी की स्थिति को सुनिश्चित करनाय महँगाई को नियन्त्रित करनाय सरकार को और गहरे कर्ज के जाल में फँसने से बचानाय निवेश, उत्पादन और रोजगार को पुनर्जीवित करना ।
जैसा कि हम जानते हैं कि भारतीय राज्य सत्ता की नयी आर्थिक नीति, भारतीय राज्य सत्ता द्वारा आर्थिक–सांस्कृतिक–राजनैतिक कदमों के एक सम्पूर्ण पैकेज का एक वैभवपूर्ण नाम है, जिसके माध्यम से भारतीय शासक वर्ग ने भारतीय अर्थव्यवस्था को साम्राज्यवादी देशों द्वारा और अधिक लूटने के लिए खोल दिया है । बर्बरतापूर्ण लूट की इसी प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है ।
––– नयी आर्थिक नीति के कारण होने वाली महिलाओं की दुर्दशा को, उन वर्गों की दुर्दशा से (जिनसे ये महिलाएँ ताल्लुक रखती हैं) अलग करके देखने का प्रयास निरर्थक है । इसलिए हमें जो बाते संज्ञान में लेनी चाहिए वे ऐसे बिन्दु हैं, जिन पर महिलाएँ इस हमले के सीधे चंगुल में फँस जाती हैं, चूँकि यही बातें खुद नयी आर्थिक नीति के खिलाफ महिलाओं को गोलबन्द करने की प्राथमिक बिन्दु बनती हैं ।
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रजनी एक्स देसाई |
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