विश्व साहित्य की धरोहर से अपने पाठकों को परिचित कराने के उद्देश्य से, संसाधन और क्षमता की अपनी सीमा के बीच, हम उसकी अनुपम और कालजयी कृतियों को हिन्दी में प्रस्तुत करते हैं। इसी क्रम में हम प्रेमचंद की उन तीन कहानियों का प्रकाशन कर रहे हैं जो निस्संदेह उनकी सर्वोत्कृष्ट कहानियों में से हैं। विषय और विचार की दृष्टि से उनके बीच की समानता के कारण ही हमने उन्हें एक साथ छापने का निर्णय लिया है।
तीनों कहानियों में समाज के उस सर्वाधिक वंचित और सर्वाधिक उत्पीड़ित तबके के प्रतिनिधियों को कहानी का विषय बनाया गया है जो समाज के हाशिये पर धकेल दिये गये हैं और जिनके जीवन की परिस्थितियों की अमानवीयता उनके चरित्र का अंग बन जाती है। ये सीधी, सरल और सच्ची कहानियाँ अपने छोटे कलेवर के बावजूद तत्कालीन ग्रामीण जीवन के अमानवीय शोषण और हृदयहीन निरंकुशता को उसकी पूरी तीक्ष्णता के साथ सामने लाती है। हम जानते हैं, उस समय से जब से ये कहानियाँ लिखी गयीं, भारतीय गाँवों का सामाजिक यथार्थ किसी हद तक बदल गया है, परन्तु शोषण की निर्मम व्यवस्था में सबसे नीचे स्थित तबका आज भी लगभग उसी हालत में वहीं पड़ा है। सामन्ती संस्कृति की वह जड़ता और निर्ममता, उसकी समस्त कूपमण्डूकता और रूढ़िवादिता आज भी लगभग उसी रूप में विद्यमान है, जिन्हें प्रेमचंद ने इन कहानियों में अपने हमले का निशाना बनाया था। पुराने परिवेश की यह निरंकुशता शोषण की नयी और अधिक अमूर्त व अधिक क्रूर सामाजिक दशाओं के साथ मिलकर आज भी लाखों लोगों को ‘सद्गति’, ‘कफन’, और ‘पूस की रात’ के पात्रों की नियति को प्राप्त करने को बाध्य कर रही है।
उम्मीद है, उत्कृष्ट साहित्य को कम मूल्य की पुस्तिकाओं के रूप में सर्वसुलभ बनाने का हमारा प्रयास पाठकों को पसन्द आएगा।
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प्रेमचन्द |
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