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लाल रूस

60 /-  INR
उपलब्धता: प्रिंट स्टॉक में नहीं है
कैटेगरी: इतिहास
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87772-52-2
पृष्ठ: 111
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प्रिंट स्टॉक में नहीं है

हिन्दी में एक ऐसी किताब की जरूरत थी, जो उसके व्यक्तियों की चकाचौंध में या उसके राजनीतिक ढाँचे के उलझन में नहीं पड़कर, सीधे-सादे शब्दों में यह बताये कि इन पच्चीस वर्षों में रूस ने अपने समृद्धि और संस्कृति की वृद्धि के लिए क्या किया और उसमें उसे कहाँ तक सफलता मिली।

क्योंकि अगर दुनिया में साम्यवाद कायम होना है, तो उसे सिर्फ यही बताना नहीं है कि उसके प्रभाव में आकर किस तरह बड़े-बड़े चमत्कारी व्यक्तित्व बनते हैं या किस तरह का एक अभूतपूर्व राजनीतिक ढाँचा वह कायम कर सकता है; बल्कि उसे संसार की जनता के सामने एक मूर्त उदाहरण रखकर बताना है कि उसके अन्दर की जनता की आर्थिक समस्या का कैसे हल किया जा सकता है और उस समस्या के हल के साथ-ही-साथ उसके सांस्कृतिक जीवन का किस तरह विकास होता जाता है।

जितना ही अधिक परिमाण में, जितनी ही अधिक सफाई और सुघराई से वह यह काम कर पायेगा उतनी ही जनता उसके नजदीक आप-से-आप खिंचती जायेगी, उसे अपनायेगी और अन्तत: अनगनित कुर्बानियाँ देकर भी उसकी स्थापना करके दम लेगी।

मेरी यह छोटी-सी पुस्तक मुख्यत: इसी उद्देश्य को सामने रखकर लिखी गयी है और मुझे आशा है, इसके पढऩे के बाद रूस की पृष्ठभूमि पर जो महान साम्यवादी प्रयोग हो रहा है उसकी ओर हिन्दी भाषी जनता अधिकाधिक आकृष्ट होगी और यह सोचने को बाध्य होगी कि वह अपने देश में भी कुछ ऐसी चीज बनाने का सपना देख सकती है या नहीं।

--श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी

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