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मंथली रिव्यू पत्रिका का प्रकाशन लियो ह्यूबरमन और पॉल एम स्वीजी के सम्पादकत्व में 1949 में न्यू यॉर्क से शुरू हुआ था। तब से आज तक, लगभग छ: दशक की अपनी यात्रा में इसने विश्व इतिहास की भारी उतार–चढ़ाव और उथल–पुथल भरी घटनाओं को देखा– शीत युद्ध का आरम्भ और अंत, तीसरी दुनिया के देशों की जनता का उपनिवेशवाद, नवउपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, नस्लवाद, जियोनवाद और हर तरह के शोषण–उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष, समाजवाद और राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष के कार्यभारों को पूरा करने के प्रयास, सोवियत संघ और युगोस्लाविया का विघटन, समाजवादी धारा का सामयिक रूप से पीछे हटना, राष्ट्रीय मुक्ति की धारा का साम्राज्यवाद के आगे आत्मसमर्पण और पूँजीवादी विश्व व्यवस्था का असमाधेय संकट।
इसी अवधि में इस पत्रिका ने विश्व पटल पर नये मुद्दों का उभरना भी देखा, जिनमें नारी मुक्ति आन्दोलन, अश्वेत और अन्य समुदायों का नस्लवाद विरोधी आन्दोलन, मुक्ति का धर्मशास्त्र, नशे का बढ़ता कारोबार, पर्यावरण विनाश और वित्तीय पूँजी का विध्वंशकारी उत्थान–पतन तथा चीन की महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति उल्लेखनीय है।
इस पत्रिका ने हर नयी राजनीतिक–सामाजिक घटना–परिघटना और प्रवृत्तियों–रुझानों का समाजवादी नजरिये से विश्लेषण प्रस्तुत किया और विश्व जनगण के लिए उनसे निकलने वाले जरूरी कार्यभारों को चिन्हित किया। निश्चय ही, इन पर विवाद और असहमति हो सकती है, लेकिन दुनिया को बदलने और समाजवादी विकल्प के लिए कार्यरत लोग इस ख्यातिलब्ध पत्रिका के महत्त्व को नकार नहीं सकते।
यह पुस्तक मन्थली रिव्यू में 50 वर्षों की अवधि के दौरान प्रकाशित लेखों का सकंलन– हिस्ट्री एज इट हैपेंड का हिन्दी अनुवाद है, जो सबसे पहले मन्थली रिव्यू प्रेस न्यू यॉर्क से और भारत में कॉर्नरस्टोन पब्लिकेशंस, खडगपुर से अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था। हम इन दोनों प्रकाशकों के प्रति आभारी और कृतज्ञ हैं।
इन लेखों में मन्थली रिव्यू के लेखकों–सम्पादकों की गहरी अन्तरदृष्टि, सच्चाई को उजागर करने के प्रति उनकी दृढ़ आस्था और अदम्य साहस सुस्पष्ट हैं। इनमें जिन घटनाओं का विवरण और विश्लेषण दिया गया है उनका समसामायिक ही नहीं, बल्कि सर्वकालिक महत्त्व है। इस अनमोल संकलन को हिन्दी पाठकों तक पहुँचाते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है। इस संकलन की हर रचना हमारे समकालीन इतिहास का जीवन्त और प्रामाणिक दस्तावेज है।
हमने पूरी कोशिश की है कि अनुवाद को सरल–सम्प्रेषणीय बनाने के साथ–साथ इनमें मूल पाठ की अविकल प्रस्तुति भी हो। इस सम्बन्ध में जो भी त्रुटि रह गयी हो, उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं और इस सम्बन्ध में सुधी पाठकों के सुझावों और आलोचनाओं का हम स्वागत करते हैं।
--गार्गी प्रकाशन
अनुक्रम
07 भूमिका तिलक डी– गुप्ता 199 सलवाडोर की महिलाओं के विचार एएसडब्ल्यू
10 समाजवाद ही क्यों अल्बर्ट आइन्सटीन 211 धर्म और वामपंथ कोर्नेल वेस्ट
17 वामपंथी प्रचार के बारे में कुछ विचार लियो ह्यूबरमन 221 बेहतर प्यार के लिए रॉक डाल्टन
24 वर्ग न्याय सम्पादकीय 223 हमारा अपना विज्ञान मार्क्सवाद रिचर्ड लेविंस
29 एक और युद्ध की राह पर सम्पादकीय 233 हे मार्केट के अराजकतावादियों की सौंवी बरसी की याद में लेस्ली विश्मान
36 बुद्धिजीवी की प्रतिबद्धता पॉल ए– बरान 246 निकारागुआ का ऐतिहासिक महत्त्व जोसेफ ई– मुलीगन
47 क्यूबा एक आपवादिक घटना ? चे ग्वेरा 255 फिलिस्तीन में बगावत सम्पादकीय
62 एक सुझाव एचयूएससी यहॉकद्ध के लिए लियो ह्यूबरमन 271 बिना समुचित कागजात के दक्षिण अफ्रीका भ्रमण जॉन साउल
69 छात्र् विद्रोह (1960–61) एनी ब्राडेन 282 पोस्ट रिवोल्यूशनरी सोसायटी पॉल एम– स्वीजी
81 चीन की सांस्कृतिक क्रान्ति सम्पादकीय 286 चिआपास के लिए एक पर्यटक निर्देशिका मार्कोस
98 जादुई जिन्दगी, जादुई मौत एदुआर्दो गालेआनो 296 वित्तीय पूँजी की विजय पॉल एम– स्वीजी
106 मानवविज्ञान और साम्राज्यवाद कैथलिन गॉफ 305 वैश्विक पारिस्थितिकी और लोकहित जॉन बेलामी फोस्टर
119 महिलाओं की मुक्ति का अर्थशास्त्र् मार्ग्रेट बेन्सटन 313 चीन : थ्येनआनमेन के छह साल बाद ली मिंकी
132 शिक्षा : एक बड़ी सनक ग्रेस ली बॉग्स 325 येल्तसिन शासन के अधीन रूसी मजदूर ब्लादिमिर विलेन्किन
152 नशे का राजनीतिक अर्थशास्त्र् सोल यूरिक 335 लोगों का महत्व है : एक गणितज्ञ की आस्था डिर्क जे– स्ट्रुइक
165 चिली : सत्ता का सवाल पॉल एम– स्वीजी 340 पूँजीवाद की प्रेतछाया सामिर अमीन
176 इजराइल की अरब जनता नोम चोम्स्की 344 पूर्वी एशिया का वित्तीय संकट विलियम के– टाब
187 बीसवीं सदी में रोजगार में गिरावट हैरी ब्रेवरमान 361 रचनाकारों के बारे में टिप्पणी
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