भूमिका
लाल चीन! बूढ़ा जर्जर चीन, मादक-अफीम का ख्यातिलब्ध चीन, हत्याकारों-डकैतों का चीन, चोटीवाले मर्दों का चीन, पैर-बँधी गुलाम स्त्रियों का चीन। क्या उसी विशाल मृतप्राय विगलित देश के एक कोने में नये खून का, सुर्ख, गरम, फड़कते हुए खून का, नयी जान का, नयी जागृति और सभ्यता का संचार हो चुका है? क्या उसी पिछड़े हुए देश के एक हिस्से में, संसार के अधिकतम जागृत और उन्नत विचार ऐसे दिमागों को जिन पर शताब्दियों की दकियानूसी ने ताला लगा रखा था, उकसा और सुलगा रहे हैं? क्या वहाँ के क्षुद्रतम व्यक्ति को भी सर्वोच्च मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त हो चुकी है वैसी सुनहरी स्वतन्त्रता जिसके सपने हम अपने देश के कुचले हुए किसानों, मजदूरों को दिखाया करते हैं; जो अमेरिका, इंगलैंड जैसे उन्नत देशों की जनता के लिए भी अभी तक सपना मात्र ही है।
हाँ, बात ऐसी ही है। यह चमत्कार सही है। यह चमत्कार कैसे प्रकट हुआ और यह अद्भुत और युग-महत्त्व रखनेवाला सत्य संसार की आँखों से किस प्रकार छुपाकर रखा गया, यह तो आप भाई बेनीपुरीजी के ग्रन्थ में पढ़ें। वहाँ आप वर्तमान-युग के इन चामत्कारिक विषयों के जीवित वर्णन के साथ भाषा-चमत्कार भी पायेंगे जो कम-से-कम मुझे तो अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। जैसी जानदार चीजों और हस्तियों को लेखक ने आपके सामने रखा है उसके उपयुक्त ही जान उनकी शैली में भी है। लाल चीन और उसके निर्माता हमारे सामने इतिहास के सूखे अस्थिपंजरों की तरह नहीं रखे गये हैं, बल्कि प्राणों से फड़कती हुई वास्तविक जीवन की चलती-फिरती जानदार चीजों की तरह हमारे सामने आये हैं। इस तरह एमिल लुडविक की भाँति जिन्दा इतिहास लिखने में बेनीपुरीजी को कितनी कामयाबी हुई है, पाठक स्वयं देख लें।
सोवियत या लाल चीन अपना सन्देश दुनिया के दूसरे अभागे गरीबों तक न पहुँचा सके, चीन के ही दूसरे हिस्से में उसकी विप्लवकारी गाथाएँ न फैलें, इसलिए चुप-चुप की एक ऊँची दीवार उसकी सरहदों पर खींच दी गयी थी। जिस प्रकार अफ्रीका के अन्धकारमय जंगलों के हब्शियों की खबरें अखबारों के परदों से छन-छनकर कभी-कभी हमारे पास पहुँचती थीं उसी प्रकार सोवियत चीन की खबरें भी उलटे-सीधे रूप में हम तक गाहे-बगाहे आ जाती थीं। लेकिन सोवियत चीन का असली महत्त्व और हिन्दुस्तान जैसे देशों के लिए उसका सबक तो जनसाधारण से छिपा ही हुआ था। जो विशेषरूप से उस विषय से दिलचस्पी रखते थे और विदेशों से परिश्रम करके उस पर मसाला इकट्ठा करते थे, उन्हें ये बातें मालूम थीं; लेकिन साधारणत: हम सब इनसे सर्वथा अनभिज्ञ ही थे। बेनीपुरीजी ने कई ग्रन्थों का मन्थन कर सोवियत चीन के जन्म और विकास का जीवित इतिहास हमारे सामने रखा है। हम इसके लिए उनके उपकृत हैं; क्योंकि चीनी सोवियत से हम भारतीय बहुत-सी बातें सीख सकते हैं और उसके अनुभवों से अपनी राजनीति में बहुत बड़ी मदद ले सकते हैं। यह पुस्तक सिर्फ हमारी जिज्ञासा को ही पूरी नहीं करेगी, बल्कि हमारा पथप्रदर्शन भी करेगी। इस दृष्टि से इस पुस्तक का विशेष महत्त्व है। हिन्दुस्तानी भाषाओं में तो ऐसी कोई पुस्तक नहीं है, जहाँ तक मैं जानता हूँ। अंग्रेजी में भी किसी एक पुस्तक में सब बातें नहीं मिल सकती हैं।
अन्त में, इस अत्यन्त उपयोगी पुस्तक को लिखने के लिए भाई बेनीपुरीजी को धन्यवाद देते हुए मैं हिन्दी-पाठी जनता, खासकर जन-आन्दोलन में काम करनेवाले राष्ट्रसेवकों से इस पुस्तक का अध्ययन और मनन करने की सिफारिश करता हूँ।
--जयप्रकाश नारायण
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