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इतिहास मुझे सही साबित करेगा

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उपलब्धता: स्टॉक में है
कैटेगरी: इतिहास
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 8187772115
पृष्ठ: 64
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प्रकाशक की ओर से

‘इतिहास मुझे सही साबित करेगा’ फिदेल कास्त्रो रुज द्वारा अदालत में दिया गया वह भाषण है जो उन्होंने सेन्टियागो डी क्यूबा की मौनकाडा बैरकों पर फौजी हमले के लिए उन पर और उनके साथियों पर चलाये गये मुकदमे में बचाव पक्ष की ओर से बोलते हुए दिया था।

सेन्टियागो डी क्यूबा के एक सुदूरवर्ती अस्पताल के एक कोने में कड़े फौजी पहरे के बीच 16 अक्टूबर, 1953 को दिया यह बयान सामान्य अर्थों में बचाव पक्ष की ओर से दिया गया बयान नहीं था। अपने और अपने साथियों की बेगुनाही साबित करने की जगह कास्त्रो ने इस भाषण में 26 जुलाई 1953 को मौनकाडा और बायामों के हमले के पहले और उसके बाद में जो कुछ हुआ उसके घटनाक्रम का सच्चा विवरण प्रस्तुत किया और इसके माध्यम से उन युवाओं के विचारों और आकांक्षाओं को निर्भीकतापूर्वक स्वर प्रदान किया जिन्होंने जान पर खेलकर मौनकाडा पर हमला किया था।

यह भाषण दृढ़ता और साहस के साथ यह घोषणा करता था कि किसी अन्यायी, उत्पीड़क और जनविरोधी व्यवस्था के खिलाफ जनता और उसके सच्चे प्रतिनिधियों का विद्रोह करना न सिपर्फ न्यायसंगत होता है बल्कि यह उनका कर्तव्य होता है। यह इस भाषण की सबसे प्रमुख बात थी जिसने इसे अमर बना दिया। सत्य और नैतिक श्रेष्ठता की इस जमीन पर खड़े होकर उन्होंने अपने और अपने उन साथियों के खिलाफ बटिस्टा निरंकुशशाही द्वारा चलाये जा रहे कुत्साप्रचार अभियान की कलई खोल दी जिनकी एक बड़ी संख्या को तानाशाह सरकार ने मुकदमे के इस नाटक के पहले ही कत्ल कर दिया था।

विद्रोह और क्रान्ति के प्रयास की नैतिक श्रेष्ठता की घोषणा के अलावा यह आने वाली क्यूबाई क्रान्ति की तथा उसकी आवश्यकता और अपरिहार्यता का उद्घोष था। यह इस भाषण की दूसरी मुख्य बात थी। इसने न केवल बटिस्टा के शासन के छल–छद्म और झूठ के ताने–बाने को तार–तार करके उसके शोषक, उत्पीड़नकारी और निरंकुश चेहरे को सामने ला दिया, बल्कि इसने क्यूबाई क्रान्ति के आने वाले दौर के लिए वैचारिक और राजनीतिक सोच के एक नये ढाँचे का निर्माण किया। इस तरह से एक नितान्त दमनकारी मुकदमे को इस भाषण ने क्यूबाई क्रान्ति के एक ऐतिहासिक मोड़ में बदल दिया। उन लोगों के खिलाफ जो न्याय के आसन पर बैठे हुए थे, युद्ध के एक नये चरण की घोषणा करते हुए इसने उसके बाद बनने वाले समाज के लिए राजनीतिक कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।

जैसा कि इतिहास में सदा से होता आया है, सत्य और न्याय के पक्ष में उठी इस हुँकार को सैनिक पहरे से घिरी अन्यायी अदालत की दीवारों से रोका नहीं जा सका और यह क्यूबा के युवा क्रान्तिकारियों के लिए आने वाली क्रान्ति का घोषणापत्र बन गया। आज भी यह भाषण उसके अन्तिम वाक्य से, उस युगान्तरकारी उद्घोष से, दुनियाभर में जाना जाता है, जिसे गलत साबित करने के लिए विगत चार दशकों से दुनिया की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी  शक्ति और उसके कुटिलतम षडयन्त्रकारी मस्तिष्कों ने अथक परिश्रम किया है। उसी शीर्षक ‘इतिहास मुझे सही साबित करेगा’ के अन्तर्गत हम उस भाषण को एक बार फिर हिन्दी में प्रकाशित करे रहे हैं।

कहने की आवश्यकता नहीं कि जब तक दुनिया के नक्शे पर एक भी उत्पीड़क और जनविरोधी हुकूमत कायम रहती है तब तक क्यूबा के युवा क्रान्तिकारियों की ओर से फिदेल कास्त्रो ने इस भाषण में सत्य, न्याय और समानता के पक्ष में जो आवाज उठायी थी, उसका प्रासंगिक बने रहना तय है। आज जब हमारे देश सहित दुनिया के अधिकांश पिछड़े देशों के लिए आर्थिक स्वतन्त्रता और सम्प्रभुता अतीत की वस्तुएँ बनती जा रही हैं और जनता को जो भी अधिकार हासिल थे वे छिनते जा रहे हैं तो ऐसे में इस भाषण का महत्व बढ़ते जाने वाला है।

आज दुनिया के हर कोने, हर चीज को बाजार के मातहत करने की जैसी होड़ मची हुई है और हर छोटे–बड़े, विकसित–अविकसित, मजबूत–कमजोर -- सभी देशों के शासक वर्ग उस होड़ में शामिल होने के लिए जिस प्रकार अफरा–तफरी कर रहे हैं, उसके शोरगुल में क्यूबा ही एक ऐसा देश है जहाँ से राष्ट्रीय सम्प्रभुता, मानवीय गरिमा और समानता की आवाज सुनायी दे जाती है। आज जब तीसरी दुनिया के तमाम देशों के शासकों के लिए समाजवाद शब्द भी चलन से बाहर हो गया है, तो क्यूबा ही इसका एकमात्र अपवाद है। इस विपरीत हवा के खिलाफ अत्यन्त ही सीमित संसाधनों वाले इस बहुत ही छोटे से देश की दृढ़ता के पीछे उसके नेता फिदेल कास्त्रो रुज के व्यक्तिगत साहस, अपराजेय आशावाद और जनता की शक्ति पर अटूट आस्था का बहुत बड़ा योगदान है। अमेरिकी साम्राज्यवाद के इस अपराजेय शत्रु का संघर्ष साम्राज्यवाद की आर्थिक विश्वविजय के इस युग में आज भी थमा नहीं है। क्यूबाई समाजवाद और उसके प्रयोगों की सीमाओं और समस्याओं पर बहस या वाद–विवाद की सम्भावना हो सकती है, लेकिन अपने शक्तिशाली साम्राज्यवादी पड़ोसी के खिलाफ फिदेल कास्त्रो के रुख और संघर्ष की निरन्तरता पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं है।

दुनिया पर आर्थिक उपनिवेशवाद के कसते शिकंजे के मद्देनजर जहाँ यह योद्धा एक ओर आज भी अपने देश की स्वतन्त्रता और सम्प्रभुता की रक्षा में जुटा हुआ है, वहीं दूसरी ओर वह इस नये किस्म के उपनिवेशवाद के वास्तविक चेहरे को दुनिया के सामने लाने का कोई भी अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देता है। इस बारे में उनके हाल के वक्तव्य और विचार ध्यान देने योग्य हैं। इन्हें भविष्य में हम संकलनों के माध्यम से पाठकों के सामने लाने की योजना बना रहे हैं।

 

--गार्गी प्रकाशन

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