• +91-9810104481 +91-9560035691
  • Change Language :
  • हिंदी

क्यूबा क्रांति के पचास वर्ष

30 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
कैटेगरी: इतिहास
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87772-72-7
पृष्ठ: 64
कुल बिक्री: 1232
विशलिस्ट में जोड़ें
कार्ट में डालें

‘‘ ...मार्क्सवाद के अमूर्त सिद्धान्त नेतृत्वकारी स्थिति में आ सकें, इससे पहले उन्हें देश–विदेश की लोकप्रिय जनतांत्रिक परम्पराओं के साथ घुल मिल जाना चाहिए। अधिकांश कम्युनिस्ट यऔर त्रात्स्कीपंथीद्ध पार्टियाँ शायद गम्भीर गलती कर रही हैं, जो यह समझती हैं कि मार्क्सवादी–लेनिनवादी सिद्धान्त का अमूर्त उपदेश देकर वे प्रभावशाली क्रान्तिकारी जनान्दोलन खड़ा कर सकती हैं।’’

--डायना रबी

इसी संकलन से--

आज क्यूबा के बारे में यदि विभ्रम की स्थिति कायम है तो इसकी मूल वजह साम्राज्यवादी दुष्प्रचार, तमाम तथ्यों–सच्चाइयों की जानकारी का अभाव या फिर मार्क्सवाद की यांत्रिक समझदारी है। एक दौर में क्यूबा की सोवियत खेमे से सम्बद्धता को तात्कालिक विश्व शक्ति संतुलन की मजबूरी और रणकौशल के रूप में न देख पाने के कारण, क्यूबा द्वारा गलतियों से सीखते हुए स्वाभाविक विकास को भी क्रान्तिकारी बिरादरी के बड़े हिस्से द्वारा नजरंदाज कर दिया गया है। क्यूबा द्वारा की गयी खु्रश्चोव के तीन शान्ति सिद्धान्तों की आलोचना और शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के बरक्स हथियारबन्द क्रान्ति की क्यूबा द्वारा पैरोकारी से भी उनकी पक्षधरता को जाना–समझा नहीं जा सका और 1990 के शुरुआती दौर में जब सोवियत खेमा ढह गया, तो क्यूबा के पतन की उद्घोषणाएँ होने लगीं-- क्यूबा को संशोधनवादी मानने वाले क्रान्तिकारियों के बीच में भी ऐसी बातें होने लगीं।

इन तमाम दुष्प्रचारों से अलग क्यूबा, विकट आर्थिक संकटों को झेलते हुए भी, न केवल टिका रहा, अपितु मानवीय मूल्यों के साथ अपने को मजबूत करता रहा, और  समाजवादी झण्डे को बुलन्द रखा। अमरीकी साम्राज्यवाद की नाक के नीचे का यह छोटा सा मुल्क न केवल संघर्ष और निर्माण की, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय एकता व भाईचारे की मिसाल बनकर खड़ा है, बल्कि उपलब्धियों के नये–नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। हर प्रकार के निर्णय में व्यापक जनता की भागीदारी को वास्तविक बनाकर क्यूबा ने सच्चे लोकतन्त्र का उदाहरण प्रस्तुत किया है। बेहद कठिन परिस्थितियों में भी सार्वजनिक शिक्षा व स्वास्थ्य न केवल यहाँ नि:शुल्क व जनसुलभ बना रहा, अपितु जनता की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने पर ही जोर रहा।

क्यूबाई क्रान्ति के पचास वर्ष होने पर दुनियाभर की मेहनतकश अवाम को एक बार फिर सच्चाई से रू–ब–रू  कराना न केवल आवश्यक है, वरन अवश्यंभावी भी।

अभी तक कोई रिव्यु नहीं दिया गया है।

रिव्यु दें

रिव्यु दें

रिव्यु दें

सम्बन्धित पुस्तकें