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जलियांवाला बाग़ की खूनी बैसाखी

50 /-  INR
1 रिव्यूज़
उपलब्धता: स्टॉक में है
कैटेगरी: इतिहास
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87772-91-3
पृष्ठ: 112
प्रकाशन तिथि:
अनुवादक: रामपाल
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  • पाठक के रोंगटे खड़े कर देने वाली यह पुस्तक अंग्रेजों के प्रति गुस्से को बढ़ा देती है। और जब पुस्तक में आजाद भारत की परिस्थितियों का जिक्र आता है तो गुस्सा चरम पर पहुँच जाता है।
    इस पुस्तक बड़े सलीके से ब्रिटिश भारत के कानूनों और आजाद भारत के कानूनों के चरित्र को समझाया गया है। भारत में ब्रिटिश राज के आखिरी पचास सालों के कानूनों की आजाद भारत के कानूनों से समानता पाठक को हैरान कर देती है और प्रत्येक चुनाव के बाद चुने जानी वाली हर सरकार अंग्रेजों के ज्यादा करीब लगने लगती है। और भगतसिंह की यह बात और ज्यादा प्रासंगिक हो जाती है कि " भारत से गोरे अंग्रेजों के जाने के बाद यहाँ भूरे अंग्रेजों का शासन होगा। "

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