मातीगारी ने मुझे झकझोर दिया था । मैं सालो से मातीगारी के प्रेम में हू । देशकाल की जो वर्तमान परिस्थितीया है उस में मातीगारी अतिप्रासंगिक है । मेरे और सहकर्मीओके यत्नस्वरुप मातीगारी इस महिने मराठी में प्रकाशित होने जा रहा है । गार्गी द्वारा प्रकाशित अन्य उपन्यास भी पढ रहा हू । जल्द ही पुरी आफ्रिकन शृंखला पढने का विचार है ।
Vishal vivek
#मातीगारी #समीक्षा
क्या हो यदि किसी देश की सरकार, किसी उपन्यास के पात्र को वास्तविक इंसान समझ, गिरफ्तारी का आदेश दे दे और हकीकत पता चलने पर लोगों के घरों तक छापे मारकर उपन्यास की सभी प्रतियां जब्त कर ले और लेखक को जेल भेज दे।
ऐसा हुआ 1986 में प्रकाशित केन्याई लेखक "न्गुगी वा थ्योंगो" के उपन्यास "मातीगारी" के साथ। इस उपन्यास की घटनाएं उपनिवेश रहे किसी भी देश पर शब्दश: लागू होती है चाहे वो भारत हो या अफ्रीका का कोई देश।
गुलामी से देश को आजाद कराकर शांति से घर जाने का सपना देख रहा एक देशभक्त जब जंगलों से लौटकर अपने लोगो की तलाश में देश में निकलता है तो यह जानकर आश्चर्य में पड़ जाता है कि आज भी देश की सारी संपदा देशी और विदेशी पूंजीपति मिलकर लूट रहे हैं, जबकि आम जनता की हालत बदतर होती जा रही है। जब वो देशभक्त, नेताओं से इस बारे में सवाल पूछता है तो उसे जेल में डाल दिया जाता है। तो वो वहां तय करता है कि उसे दूसरी आजादी के लिए दोबारा संघर्ष करना होगा।
आज के भारत की मौजुदा परिस्थितियों को समझने के लिए यह एकदम जरूरी किताब है। इतना विचारोत्तेजक और सटीक उपन्यास मैंने पहली बार पढ़ा है। आप भी जरूर पढ़ें।
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दयानंद कनकदंडे
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Vishal vivek
रिव्यु देंमातीगारी ने मुझे झकझोर दिया था । मैं सालो से मातीगारी के प्रेम में हू । देशकाल की जो वर्तमान परिस्थितीया है उस में मातीगारी अतिप्रासंगिक है । मेरे और सहकर्मीओके यत्नस्वरुप मातीगारी इस महिने मराठी में प्रकाशित होने जा रहा है । गार्गी द्वारा प्रकाशित अन्य उपन्यास भी पढ रहा हू । जल्द ही पुरी आफ्रिकन शृंखला पढने का विचार है ।
#मातीगारी #समीक्षा
क्या हो यदि किसी देश की सरकार, किसी उपन्यास के पात्र को वास्तविक इंसान समझ, गिरफ्तारी का आदेश दे दे और हकीकत पता चलने पर लोगों के घरों तक छापे मारकर उपन्यास की सभी प्रतियां जब्त कर ले और लेखक को जेल भेज दे।
ऐसा हुआ 1986 में प्रकाशित केन्याई लेखक "न्गुगी वा थ्योंगो" के उपन्यास "मातीगारी" के साथ। इस उपन्यास की घटनाएं उपनिवेश रहे किसी भी देश पर शब्दश: लागू होती है चाहे वो भारत हो या अफ्रीका का कोई देश।
गुलामी से देश को आजाद कराकर शांति से घर जाने का सपना देख रहा एक देशभक्त जब जंगलों से लौटकर अपने लोगो की तलाश में देश में निकलता है तो यह जानकर आश्चर्य में पड़ जाता है कि आज भी देश की सारी संपदा देशी और विदेशी पूंजीपति मिलकर लूट रहे हैं, जबकि आम जनता की हालत बदतर होती जा रही है। जब वो देशभक्त, नेताओं से इस बारे में सवाल पूछता है तो उसे जेल में डाल दिया जाता है। तो वो वहां तय करता है कि उसे दूसरी आजादी के लिए दोबारा संघर्ष करना होगा।
आज के भारत की मौजुदा परिस्थितियों को समझने के लिए यह एकदम जरूरी किताब है। इतना विचारोत्तेजक और सटीक उपन्यास मैंने पहली बार पढ़ा है। आप भी जरूर पढ़ें।
रिव्यु दें