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आज की अफ्रीकी कहानियाँ-1

120 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87772-35-2
पृष्ठ: 212
अनुवादक: आनन्द स्वरूप वर्मा
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अनुवाद और सम्पादन : आनन्द स्वरूप वर्मा

 

कहानी–क्रम
प्रस्तावना                                                              9
नाइजीरिया : परिचय                                           17
लागोस का अजनबी             साइप्रन एक्वेंसी              23
पुल के नीचे की हँसी            बेन ओकरी                   29
केन्या : परिचय                                                    49
शहादत                             न्गुगी वा थ्योंगो               55
अँधेरा                                न्गुगी वा थ्योंगो               64
उगांडा : परिचय                                                  77
विजेता                               बारबरा किमैन्ये             83
सेनेगल : परिचय                                                 95
कितने खूबसूरत फूल            जोसेफ जोबेल            101
काली लड़की                      सेम्बेन ओस्मान           109
मोजांबीक : परिचय                                           125
पापा, साँप और मैं              लुई बर्नार्दो हॉनवाना      129
सिएरा लिओन : परिचय                                     143
जिन्दगी                             एबिओस निकॉल          149
दक्षिण अफ्रीका : परिचय                                    157
बेन्च                                रिचर्ड राइव                  165
शराब की दावत                एलेन पैटन                    172
वह मेरा दोस्त था               माइकल पिकार्डी           179
अँधेरी कोठरी में               अलेक्स ला गुमा              189
हाजी                              अहमद इसॉप                 198
 

प्रस्तावना

तीसरी दुनिया, खासतौर से एशिया और अफ्रीका के देशों का साहित्य पढ़ते समय भारतीय पाठकों को एक अद्भत समानता दिखाई देती है। इन देशों की सामाजिक स्थितियाँ, इन देशों में रहने वाले लोगों के रीति–रिवाज, इनकी परम्पराएँ, इनकी सामाजिक संरचना, इनके दुख–दर्द–– ढेर सारी ऐसी बातें हैं, जो भारतीय पाठकों के लिए अजनबी नहीं हैं। यूरोप का साहित्य हमें एक नये लोक में ले जाता है–– एक ऐसे लोक में जो हमारे अन्दर कौतूहल भले ही पैदा करे, पर अपनापन कभी नहीं पैदा कर पाता। वहाँ के जीवन के साथ हम तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाते हैंऋ उनके पात्र हमारे लिए किसी अजनबी ग्रह पर रहनेवाले पात्रों की तरह हैं। लेकिन तीसरी दुनिया के देशों के साथ ऐसी स्थिति नहीं है। लातिन अमरीकी देशों का साहित्य पढ़ते समय हमें थोड़ी दिक्कत जरूर होती है, क्योंकि यहाँ के ज्यादातर देश स्पेन के उपनिवेश रहे हैं और यहाँ के सांस्कृतिक जीवन पर प्रफांस और स्पेन का ज्यादा प्रभाव है। यहाँ के साहित्य की भाषा भी स्पेनिश है, जो अनुवाद के रूप में हम तक पहुँचते–पहुँचते प्राय: अपना सौन्दर्य खो देती है।

इसके विपरीत अफ्रीकी महाद्वीप के ढेर सारे देश भारत की ही तरह ब्रिटेन के उपनिवेश रहे हैं। केन्या, नाइजीरिया, घाना, उगांडा, जाम्बिया, मलावी आदि अनेक देशों में ब्रिटेन का शासन था और यहाँ का साहित्य या तो उनकी अपनी भाषा में अथवा अंग्रेजी में उपलब्ध है। सेनेगल, गिनी, अल्जीरिया, आइवरी कोस्ट आदि देश प्रफांस के उपनिवेश थे और यहाँ के जनजीवन पर प्रफांस की संस्कृति का गहरा असर हैऋ पिफर भी चूँकि अफ्रीका के लगभग सभी देश एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था और सामन्ती भूमि–सम्बन्धों वाले देश रहे हैं, इसलिए भाषा और संस्कृति के स्तर पर सतही तौर पर भिन्नता के बावजूद यहाँ के लोगों के साथ भारतीय पाठक का सामंजस्य स्थापित हो जाता है। यही स्थिति पुर्तगाल, बेल्जियम अथवा स्पेन शासित अफ्रीकी देशों में भी है, जो अब आजाद हो चुके हैं। जिम्बाब्वे यजिसे आजादी से पहले हम रोडेशिया के नाम से जानते थे द्ध और दक्षिण अफ्रीका में एक खास तरह की गोराशाही रही है और यहाँ के लोगों ने अफ्रीका के अन्य देशों के मुकाबले एक अलग तरह का उत्पीड़न झेला है। लेकिन ध्यान देने की बात है कि ये देश भी मुख्य रूप से कृषि–आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश रहे हैं और यही वजह है कि यहाँ के लोगों की ढेर सारी समस्याएँ लगभग वैसी ही हैं, जैसी भारत अथवा एशिया के अन्य कृषि–आधारित अर्थव्यवस्था वाले देशों की रही हैं।

शुरू से ही मेरा यह मानना रहा कि किसी भी देश के साहित्य को तभी समझा जा सकता है, जब वहाँ के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की भी थोड़ी–बहुत जानकारी हो। कहानियों या कविताओं के मात्र अनुवाद पढ़ने से जो सुख मिलता है, वह उस समय और ज्यादा बढ़ सकता है अगर हमें इन देशों के बारे में जानकारी हो। यही वजह है कि प्रस्तुत संकलन में हर देश की कहानी से पूर्व उन देशों के राजनीतिक और सांस्कतिक परिदृश्य पर अत्यन्त संक्षिप्त टिप्पणियाँ दी गयी हैं। मेरा यह भी मानना है कि केवल विदेशी साहित्य के लिए ही नहीं, बल्कि भारत की अन्य भाषाओं की रचना का अनुवाद प्रस्तुत करते समय भी सम्ब( भाषा–भाषी क्षेत्र की सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की जानकारी भी पाठकों को मिले तो रचनाओं की सम्प्रेषणीयता बढ़ सकती है। साथ ही मैं यह भी कहना चाहूँगा कि अफ्रीका का साहित्य बहुत समृ( है और इस संकलन में शामिल कहानियाँ किसी भी रूप में अफ्रीकी साहित्य का पूरा–पूरा प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। इसके लिए इस तरह के अनेक संकलनों की जरूरत होगी। पिफर भी यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि जिन रचनाकारों को इसमें शामिल किया गया है, वे अपने–अपने देशों में कापफी प्रतिष्ठित हैं और उनके माध्यम से अफ्रीकी साहित्य के विशाल भंडार की एक झलक मिल जाती है।

-- आनन्द स्वरूप वर्मा

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