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खून की पंखुड़ियाँ

300 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87772-37-9
पृष्ठ: 450
अनुवादक: आनन्द स्वरूप वर्मा
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‘खून की पंखुड़ियाँ’ की रचना प्रक्रिया के बारे में जिक्र करते हुए न्गुगी ने अपने निबन्ध संग्रह ‘राइटर्स इन पॉलिटिक्स’ में एक जगह लिखा है– ‘‘इस उपन्यास के लेखन के दौरान यह देख कर मैं हतप्रभ रह गया कि केन्या की गरीबी की वजह कोई अन्दरूनी नहीं है– यह इसलिए गरीब है क्योंकि यहाँ की सारी सम्पदा का इस्तेमाल पश्चिमी जगत के विकास में हो रहा है। …पश्चिम जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान और अमरीका द्वारा एक यूनिट पूँजी निवेश के बदले में साम्राज्यवादी बुर्जुआ हमारे यहाँ से दस यूनिट सम्पदा अपने देशों को ले जाता है। ….इसमें मैं यही दिखाना चाहता था कि साम्राज्यवाद कभी भी हम केन्याइयों का या हमारे देश का विकास नहीं कर सकता। ऐसा करते समय मैंने भरसक केन्या के मजदूरों और किसानों की इस अनुभूति के प्रति ईमानदार रहने की कोशिश की जिसे उन्होंने 1895 से ही अपने संघर्षों के जरिये प्रदर्शित किया है।’’

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