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वित्तीय महासंकट

80 /-  INR
उपलब्धता: प्रिंट स्टॉक में नहीं है
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 8187772689
पृष्ठ: 152
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प्रिंट स्टॉक में नहीं है

आज पूरी दुनिया एक अभूतपूर्व, बहुआयामी और असाध्य आर्थिक संकट की गिरफ्रत में है। 2007–08 में अमरीकी गृह–Íण बुलबुले के फटने और उसके परिणामस्वरूप वहाँ का वित्तीय ढाँचा चरमरा जाने के बाद यह संकट एक–एक कर के दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं को अपनी चपेट में लेने लगा। दुनिया भर की पूँजीपरस्त सरकारों ने बेहिसाब पैसा झोंक कर अपने–अपने वित्तीय क्षेत्र को उबारने का प्रयास किया। लेकिन यह समस्या दिनों–दिन गहराती गयी। शेयर–बाजार, बैंक और वित्तीय कम्पनियों से शुरू हुआ यह संकट आज उत्पादक अर्थव्यवस्था-- उद्योग और कृषि सहित आर्थिक जीवन के कोने–कोने में पफैल चुका है।

व्यवस्थापोषक बुद्धिजीवियों और नीति निर्माताओं ने इस संकट और इसके अन्तर्निहित कारणों पर पर्दा डालने का हर सम्भव प्रयास किया। लेकिन आज इस सच्चाई से आँख चुराने का किसी में साहस नहीं है कि यह संकट केवल अमरीका तक सीमित नहीं, बल्कि विश्वव्यापी संकट है, वित्तीय क्षेत्र तक सीमित नहीं, बल्कि पूँजीवादी व्यवस्थाजन्य एक सर्वग्राही संकट है। यह संकट पूँजी संचय, पूँजी निवेश और मुनाफाखोरी से सम्बन्धित है, पूँजीवादी व्यवस्था में अन्तर्निहित है और उसका लाक्षणिक चरित्र है।

इस संकट पर दुनिया भर में टनों साहित्य लिखा गया, लेकिन दुर्भाग्यवश हिन्दी पाठकों के लिए ऐसा साहित्य दुर्लभ है। इस विषय पर हिन्दी में शायद ही कोई पुस्तक उपलब्ध हो जो इस संकट की तह तक जाकर उसकी विवेचना करे और कोई हल भी सुझाए।

अँग्रेजी की प्रतिष्ठित जनपक्षीय, प्रगतिशील पत्रिका मन्थली रिव्यू में आर्थिक संकट से सम्बन्धित लेख निरन्तर प्रकाशित होते रहे हैं। संकट की शुरुआत से पहले ही इसका पूर्वानुमान करते हुए, संकट के दौरान उसकी गहराई, गति और दिशा की ओर संकेत करते हुए तथा इस समस्या की गहराई से छानबीन करके उसका सही समाधान सुझाते हुए, मन्थली रिव्यू ने अनेक गम्भीर और सारगर्भित निबन्ध प्रकाशित किये। इन निबन्धों में हस्तामलक तथ्यों और अकाट्य तर्कों के साथ–साथ जनपक्षधर दृष्टिकोण, वैज्ञानिक विश्लेषण और ऐेतिहासिक परिपे्रक्ष्य का अद्भुत संयोग है।

यह पुस्तक मंथली रिव्यू के वर्तमान सम्पादकों-- जॉन बेलामी पफोस्टर और प्रफेड मैगडॉफ की उक्त पत्रिका में प्रकाशित निबन्धों का संकलन है जिन्हंे बाद में द ग्रेट फाइनान्शियल क्राइसिस नाम से पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक उसी का हिन्दी अनुवाद है। हम इसके लिए मन्थली रिव्यू प्रेस और इस पुस्तक के लेखकों के आभारी हैं।

गार्गी प्रकाशन हिन्दी पाठकों के लिए प्रगतिशील साहित्य उपलब्ध कराने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहा है। यह पुस्तक इसी दिशा में एक प्रयास है। उम्मीद है कि सुधि पाठक इस पुस्तक के अनुवाद और कलेवर के बारे में अपनी आलोचनाओं और सुझावों से हमें अवश्य अवगत करायेंगे।

--गार्गी प्रकाशन

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