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एक विराट जुआघर

30 /-  INR
उपलब्धता: प्रिंट स्टॉक में नहीं है
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87772-31-X
पृष्ठ: 50
अनुवादक: दीप्ती
कुल बिक्री: 810
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अनुवाद : दीप्ति

अमरीकी व्यवस्था की आधारशिला वित्तीय पूँजी है जो दिनोंदिन सटोरिया चरित्र ग्रहण करती गयी है। यही व्यवस्था अब दुनिया के सभी देशों का मॉडल बन गयी है। इसने मुट्ठी भर लोगों की समृद्धि के साथ व्यापक आबादी की कंगाली को जन्म दिया है। इसके बारे में फिदेल कहते हैं––

मौजूदा व्यवस्था टिकाऊ नहीं है, यह बात इस व्यवस्था की दुर्बलता और कमजोरी से साबित हो जाती है, जिसने इस धरती को एक विराट जुआघर में बदल दिया है, और कहीं–कहीं तो पूरे समाज को ही जुआरी बना दिया है। मुद्रा और निवेश के कार्य को इस तरह घोषित कर दिया है कि वे उत्पादन और दुनिया की सम्पदा बढ़ाने के बजाय पैसे से पैसा कमाने का जरिया बन गया है। इस तरह की विकृति विश्व अर्थव्यवस्था को तबाही की ओर ले जायेगी, यह तय है।

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