प्रकाशक की ओर से
क्वाण्टम भौतिकी सामान्यत: प्राकृतिक विज्ञानों के और विशेषकर सैद्धान्तिक भौतिकी के विकास का सर्वोच्च सोपान है। यह उसकी नवीनतम और जटिलतम पराकाष्ठा है। इससे विपरीत दावों के बावजूद यह इस बात का एक बार फिर प्रमाण प्रस्तुत करती है कि प्रकृति अपने सभी सम्भव रूपों में तथा सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंशों में भी ज्ञेय है। साथ ही, यह प्रकृति और उसके सम्बन्ध में हमारे ज्ञान की सापेक्षता का पुनरुद्घोष भी है और इस सम्बन्ध में हमारे बोध को नयी उफँचाई प्रदान करती है। क्वाण्टम सिद्धान्त अपने जन्म से भी पहले कहे गए इस दूरदर्शितापूर्ण कथन की पुष्टि करता है कि ‘‘प्रकृति की सभी सीमाएँ सापेक्ष हैं, अस्थायी हैं और पदार्थ के ज्ञान की ओर हमारे मस्तिष्क के बढ़ने को व्यक्त करती हैं।’’ सद्य:समाप्त शताब्दी की इस महान वैज्ञानिक उपलब्धि की विकासयात्रा से हिन्दी के पाठकों को परिचित कराने के उद्देश्य से यह छोटी सी पुस्तिका उनके समक्ष प्रस्तुत है। न केवल क्वाण्टम यान्त्रिकी की अब तक की विकासयात्रा से, बल्कि यह आलेख उस प्रक्रिया के उतार–चढ़ावों, उसमें चली बहसों व विवादों तथा उनके दार्शनिक गूढ़ार्थों से हमें सरल और सुबोध ढंग से परिचित कराता है।
विज्ञान के विषयों पर आमतौर पर ही हिन्दी में मौलिक लेखन का अभाव रहता है। क्वाण्टम जैसे विषयों पर हिन्दी में लिखना तो अपवाद ही है। नतीजतन, उच्चतर भौतिकी जैसी मानवीय ज्ञान की सरहदों की सैर करने, वहाँ पर चल रही बहसों और विवादों से रूबरू होने से हिन्दी के पाठक प्राय: वंचित ही रह जाते हैं। ‘क्वाण्टम के सौ साल’ शीर्षक यह आलेख जो एक लेखमाला के रूप में ‘सन्धान’ के प्रवेशांक सहित चार अंकों में प्रकाशित हुआ था, किसी हद तक इस कमी को पूरा करता है।
एक भौतिकीविद् होने के साथ–साथ एक सक्रिय राजनीतिकर्मी होने के कारण रवि सिन्हा एक प्रकार से दोहरी समझ एवं अधिक व्यापक अन्तर्दृष्टि से सम्पÂ हैं और एक ओर जहाँ अधुनातन भौतिकी की अनुसन्धानशालाओं में चल रहे विवादों को सरल–सहज भाषा में खोलकर रख देने में सक्षम हैं, वहीं विज्ञान के दायरे में हुए इन गहरे परिवर्तनों के उपयोग से दर्शन के क्षेत्र में पुनरुत्थान के प्रयासों को उद्घाटित कर पाते हैं। उन आम पाठकों की उपयोगिता की दृष्टि से ही हमने इस लेखमाला को एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है, जो विज्ञान, दर्शन और उनके अर्न्तसम्बन्ध जैसे विषयों पर आमतौर पर रुचि रखते हैं परन्तु आधुनिक भौतिकी की बारीकियों को गणितीय भाषा में समझ सकने में पूर्णत: सक्षम नहीं हैं।
इस विचारोत्तेजक आलेख के लिए हम रवि सिन्हा और समस्त‘सन्धान’ परिवार के आभारी हैं।
--गार्गी प्रकाशन
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रवि सिन्हा |
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