जन क्रान्तियों के इतिहास में 1905 की रूसी क्रान्ति का अत्यन्त विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण स्थान है।
रूस की 1917 की महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति के लिए जमीन तैयार करने का काम उसी ने किया था। तुर्की, फारस (ईरान) तथा चीन की क्रान्तियों पर भी उसकी गहरी छाप थी। इसके अतिरिक्त पश्चिमी यूरोप के देशों के जनवादी और क्रान्तिकारी उभार को भी उसने बहुत गहराई से प्रभावित किया था।
इसीलिए लेनिन ने कहा था कि उक्त रूसी क्रान्ति “आने वाली यूरोपीय क्रान्ति की पूर्व–पीठिका है।” इसी के आधार पर वह यह भी कह सके थे कि रूस की “आने वाली क्रान्ति केवल सर्वहारा क्रान्ति ही हो सकती है।”
1905 की रूसी क्रान्ति के विषय में लेनिन ने बतलाया था कि उसकी “विशिष्टता यह है कि अपने सामाजिक तत्व की दृष्टि से वह एक पूँजीवादी–जनवादी क्रान्ति थीय किन्तु संघर्ष के अपने तरीकों की दृष्टि से वह एक सर्वहारा क्रान्ति थी।”
लेनिन ने यह भी बतलाया था कि “रूसी क्रान्ति ही संसार के इतिहास की प्रथम, हालाँकि अन्तिम कदापि नहीं, वह महान क्रान्ति थी जिसमें सामूहिक हड़ताल ने असाधारण रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।”
ऐसा क्यों था, 1905 की रूसी क्रान्ति का चरित्र दोहरा क्यों था और सामूहिक हड़ताल ने उसमें क्यों और कैसे इतनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी–– इस सबको जानना और समझना उन सभी के लिए आवश्यक है, जो सामाजिक रूपान्तरण के संघर्ष में जुटे हुए हैं।
क्रान्ति के महान दृष्टा तथा असली नेता, ब्लादीमीर इलिच लेनिन ने इस छोटे–से भाषण में 1905 की रूसी क्रान्ति के वर्ग–चरित्र, उसकी प्रेरक शक्तियों तथा उसके दौरान अपनाये जाने वाले संघर्ष के तरीकों पर वैज्ञानिक ढंग से प्रकाश डालते हुए, वास्तव में, क्रान्तिकारी कार्यनीति, रणनीति एवं सैन्य–नीति के सम्बन्ध में मार्क्सवादी सीखों का निचोड़ प्रस्तुत कर दिया है–– एक तरह से गागर में सागर भर दिया है। क्रान्तिकारी सीखों के सम्बन्ध में उनके चिन्तन के अनेक रत्न–कण इसमें पाठक को जगह–जगह बिखरे मिलेंगे।
आशा है कि सभी गम्भीर अध्येताओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह पुस्तिका उपयोगी सिद्ध होगी।
–– रमेश सिन्हा
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