• +91-9810104481 +91-9560035691
  • Change Language :
  • हिंदी

राज्य और क्रान्ति

70 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 81-87784-64-4
पृष्ठ:
प्रकाशक: अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशन
विशलिस्ट में जोड़ें
कार्ट में डालें

मार्क्स की शिक्षा के साथ आज वही हो रहा है, जो उत्पीड़ित वर्गों के मुक्ति संघर्षों में उनके नेताओं और क्रान्तिकारी विचारों की शिक्षाओं के साथ इतिहास में अकसर हुआ है। उत्पीड़क वर्गों ने महान क्रान्तिकारियों को उनके जीवनभर लगातार यातनाएं दीं, उनकी शिक्षा का अधिक से अधिक बर्बर, द्वेष, अधिक से अधिक क्रोधोन्न्मत्त घृणा तथा झूठ बोलने और बदनाम करने के अधिक से अधिक अन्धाधुन्ध मुहिम से उत्तर दिया था। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी क्रांतिकारी शिक्षा को सारहीन करके, उसकी क्रान्तिकारी धार को कुन्द करके, उसे भ्रष्ट करके उत्पीड़ित वर्गों को "बहलाने" तथा धोखा देने के लिए उन्हें देवत्व प्रदान करने और उनके नामों को निश्चित गौरव प्रदान करने के प्रयत्न किये जाते हैं।

... मजदूरों के दिमाग में यह विचार बैठाने के बजाय कि वह समय करीब आ रहा है, जब उन्हे उठना चाहिए, राज्य की पुरानी मशीनरी का ध्वन्स करना चाहिए, उसकी जगह राज्य की एक नयी मशीनरी कायम करनी चाहिए और इस तरह अपने राजनीतिक शासन को समाजवादी पुनर्निर्माण का आधार बनाना चाहिए, उन्होने मजदूरों को असल में इसका बिलकुल उल्टा ही पाठ पढ़ाया है और "सत्ता पर अधिकार प्राप्त करने की" बात को इस तरह से चित्रित किया है कि अवसरवाद के लिए हजारों सुराखें रह गयी हैं।

अभी तक कोई रिव्यु नहीं दिया गया है।

रिव्यु दें

रिव्यु दें

रिव्यु दें

सम्बन्धित पुस्तकें