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द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद: सर्वहारा दर्शन की रूपरेखा

130 /-  INR
उपलब्धता: स्टॉक में है
भाषा: हिन्दी
आईएसबीएन: 978-93-94061-15-6
पृष्ठ: 192
प्रकाशक: अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशन
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इस किताब की दो सबसे खास बात है कि द्वन्दवात्मक भौतिकवादी दर्शन के जरिये ज्ञान- विज्ञान की नई खोजों की व्याख्या की गयी है उसकी रौशनी में आज के दौर की नई चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए।

इस किताब से.......

इस बारे में शायद ही कोई संदेह हो कि दर्शनशास्त्र का सही ज्ञान जनता के हितों की रक्षा करनेवाले बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं और नौजवानों के लिए एक विचारधारात्मक हथियार की तरह है जिसके बिना युद्ध के मैदान में उनका निहत्थे योद्धा की तरह असहाय होना और हार जाना लाजमी है । दर्शनशास्त्र पर एक अच्छी किताब का उद्देश्य है–– जनता को सही विचारधारात्मक हथियार से लैस करना । जनता की जिन्दगी बदहाल है और वह अपने संघर्षों में लगातर हार का सामना कर रही है, इसका मतलब है कि वह अभी सही विचारधारा और सच्चे दर्शन से वंचित है ।

आज की विषम परिस्थिति में क्रान्तिकारी कार्यकर्ताओं और मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है–– सर्वहारा दर्शन की हिफाजत करना । यह तभी सम्भव है जब मार्क्सवादी विचारधारा को व्यापक जनता और खास तौर से मजदूर वर्ग के बीच ले जाया जाये और व्यवहारिक कार्रवाइयों के जरिये हर जगह और हर स्तर पर प्रतिक्रियावादियों का मुँहतोड़ जवाब दिया जाये । इसके साथ ही विज्ञान के विकास के साथ ज्ञान के क्षेत्र में उपस्थित नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए मार्क्सवाद का इस्तेमाल किया जाये । इन व्यवहारिक कार्रवाइयों के दौरान मार्क्सवाद का सृजनात्मक विकास इसके जिन्दा रहने की शर्त है ।

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विक्रम प्रताप विक्रम प्रताप

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