द्वारा In Stroy क्यूबा का तजुर्बा

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(मंथली रिव्यू में प्रकाशित दो लेख)

अनुवाद : भरत खुल्बे

क्यूबा की जनता कामयाब होगी

क्यूबा क्रान्ति के नेता फिदेल कास्त्रो रुज द्वारा सातवीं पार्टी कांग्रेस में दिया गया आखिरी भाषण

 

संकट के काल में किसी जनता का नेतृत्व करना अतिमानवीय प्रयास की माँग करता है। उनके बिना बदलाव असम्भव होगा। इस तरह की सभा में जहाँ क्रान्तिकारी जनता द्वारा खुद ही चुने गये हजारों प्रतिनिधि इकट्ठा हैं जिनको उन्होंने खुद अपना प्राधिकार सौंपा है, क्योंकी यह सब उनके द्वारा जिन्दगी में हासिल किये गये सर्वाेच्च सम्मान की नुमाइंदगी करता है, जिसमें एक क्रान्तिकारी होना भी शामिल है और जो हमारी चेतना की उपज है।

मैं समाजवादी क्यों बना, या सीधे–सीधे कहें तो मैं कम्युनिस्ट क्यों बना? वह शब्द जो ऐसे लोगों द्वारा सबसे ज्यादा तोड़–मरोड़कर और अपमानजनक रूप में बोला जाता है जिनको गरीबों, वंचितों का शोषण करने का विशेषाधिकार प्राप्त है, महज इसलिए कि वे उस भौतिक सम्पदा से वंचित हैं जो मेहनत, प्रतिभा और मानवीय उर्जा से पैदा होती है। कब से आदमी इस कशमकश में जी रहा है, अनन्त काल से, जिसका कोई ओर–छोर नहीं। मैं जानता हूँ कि आपको इसकी व्याख्या की जरूरत नहीं, लेकिन शायद कुछ सुननेवालों को हो।

मैं सरल भाषा में बोलता हूँ इसलिए यह अच्छी तरह समझ में आता है कि मैं लापरवाह, अतिवादी या अन्धा नहीं हूँ और न ही मैंने अपनी विचारधारा अपनी सहूलियत के हिसाब से अर्थशास्त्र की पढ़ाई करके हासिल की है।

जब मैं कानून और राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी था तो मैंने कोई ट्यूशन नहीं किया जिसका उन दिनों काफी चलन था। बिलकुल, मैं उन दिनों 20 साल का था और मेरी खेल में और पर्वतारोहण में काफी दिलचस्पी थी। मार्क्सवाद–लेनिनवाद के अध्ययन में मदद करनेवाले किसी ट्यूशन पढ़नेवाले के बिना, मैं एक सिद्धान्तवादी से ज्यादा कुछ नहीं था और निश्चय ही मेरा सोवियत संघ पर पूरा भरोसा था। लेनिन की रचनाओं का क्रान्ति के 70 साल बाद वहाँ उल्लंघन हुआ। इतिहास का सबक क्या है! यह दावा किया जा सकता है कि रूसी क्रान्ति जैसी दूसरी घटना होने में 70 साल नहीं लगेंगे, इस क्रम में कि मानवता के सामने एक शानदार सामाजिक क्रान्ति का अनुभव हो जो उपनिवेशवाद और उसका सहचर, साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष की दिशा में एक बड़े कदम की निशानी बने।

हालाँकि आज धरती पर मंडरानेवाला सबसे बड़ा खतरा शायद आधुनिक शस्त्रागार की सबसे ज्यादा तबाही लानेवाली ताकत है जो इस गृह की शान्ति को खत्म करती है और धरती की सतह पर मौजूद जिन्दगी को असम्भव बनाती है।

प्रजातियाँ उसी तरह गायब हो जायेंगी जैसे डायनासोर गायब हो गया, शायद दूसरे नक्षत्रों के जीव–जन्तुओं का जमाना आये या हो सकता है कि सूरज इतना गरम हो जाये कि वह सौर मंडल के सारे गृह–उपग्रह को जला कर राख कर दे, जैसा कि बड़ी संख्या में वैज्ञानिक महसूस कर रहे हैं। अगर उनमें से कई लीगों के सिद्धान्त सही हैं, जिनसे हमारे जैसे साधारण लोग भी सचेत हैं, तो व्यवहारिक लोगों को तो और भी जानना चाहिए और उसके हिसाब से खुद को बदलना चाहिए। अगर हमारी प्रजाति लम्बे समय तक बची रही तो आनेवाली पीढियाँ हमसे बहुत ज्यादा जान जायेंगी, लेकिन पहले उनको एक विकट समस्या का समाधान करना होगा। करोड़ों इनसानों को कैसे खिलाया–पिलाया जाय जिनकी आज की सच्चाई उनके लिए जरूरी साफ पानी और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता से मेल नहीं खा रही हैं?

आप में से कुछ लोग या ज्यादातर लोग हैरान हैं कि इस भाषण में राजनीति कहाँ है। मुझ पर भरोसा कीजिए, मुझे यह कहते हुए अफसोस हो रहा है, लेकिन इन मर्यादित शब्दों में ही राजनीति है। अगर असंख्य लोग इन सच्चाइयों के साथ हमारी परवाह करते हैं तथा आदम और हौव्वा के जमाने की तरह वर्जित फल खाना जारी नहीं रखते। अफ्रीका के प्यासे लोगों को पानी कौन पिलार्य्गा जिनके पास तकनीक नहीं है, बारिश नहीं, जलसे नहीं, रेट से भरे भूजल के सिवा कोई पानी का भण्डार नहीं? हम देखेंगे कि वे सरकारे इस पर काया कहती हैं जिनमें से लगभग सबने जलवायु की चिन्ता करते हुए समझौते पर दस्तखत किये हैं।

हमें इन मुद्दों पर लगातार प्रहार करना होगा और मैं यहाँ जरूरी बातों का जिक्र करने के अलावा ज्यादा विस्तार में नहीं जाना चाहता।

जल्दी ही मैं 90 साल का हो जाऊँगा, यह ख्याल मेरे दिमाग में पहले कभी नहीं आया होता और यह किसी प्रयास का नतीजा नहीं है, महज एक संयोग है। जल्द ही मैं भी वैसा ही हो जाऊँगा जैसा एक दिन सबको होना है। हमारी बारी आएगी, हम सब की बारी आएगी, लेकिन क्यूबा के कम्युनिस्ट उन विचारों के सबूत के रूप में मौजूद रहेंगे कि इस धरती पर, अगर हम उत्साह और गरिमा के साथ काम करें तो हम इन्सानों के लिए जरूरत के भौतिक और सांस्कृतिक सम्पदा का उत्पादन कर सकते हैं, और इसे हासिल करने के लिए हमें लगातार लड़ना होगा। लातिन अमरीका और दुनियाभर के अपने भाइयों को हम बताना चाहते हैं कि क्यूबा की जनता कामयाब होगी।

हो सकता है की इस सदन में मेरा यह आखिरी भाषण हो। मैंने कांग्रेस द्वारा चुनाव के लिए पेश किये गये सभी उम्मीदवारों को वोट दिया और आपने यहाँ आमंत्रित किया और मुझे सुना इसके लिए मैं आपकी सराहना करता हूँ। मैं आप सभी लोगों को और सबसे पहले कोम्पेनेरो राउल कास्त्रो को उनके शानदार प्रयासों के लिए बधाई देता हूँ।

हम अगले अभियान की ओर कूच करेंगे और जिन चीजों को हमें बेहतरीन बनाना है, पूरी निष्ठा और एकता की ताकत से बनायेंगे, ठीक वैसे ही जैसे मार्ती, मसिओ और गोमेज के अजेय अभियान।

क्यूबा : शिक्षा और क्रान्ति

 

–रिकार्डो अलारकोन दे केसादा

(रिकार्डो अलारकोन दे केसादा 14 से अधिक वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र में क्यूबा के प्रतिनिधि थे। वे 1993 से क्यूबा की राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष रहे हैं। 2009 में, उन्होंने पिछले तेरह वर्षों से अमरीका में बंद पाँच क्यूबाई राजनीतिक बन्दियों पर काउन्टरपंच में “द फॉरबिडन हीरोज” नामक लेखों की एक श्रृंखला का प्रकाशन किया था।)

1795 में फादर जोसे ऑगस्तिन कबाएरो ने क्यूबा द्वीप के सभी नागरिकों के लिए सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था के निर्माण की पहली परियोजना पेश की। यह एक दूरदर्शी विचार था लेकिन उस समय इसे अंजाम दे पाना असम्भव था। यह द्वीप उस समय स्पेनिश राज की औपनिवेशिक जागीर था और ज्यादातर आबादी या तो दास–प्रथा में धकेल दी गयी थी या फिर उन मेस्तिजो और आजाद नीग्रो लोगों की थी जो पृथक्करण और नस्लभेद के शिकार थे। शिक्षा, जोकि एक बहुत छोटी सी अल्पसंख्यक आबादी की पहुँच में थी, वह भी रूढ़िवादी पांडित्यपूर्ण दर्शन के कड़े सिद्धान्तों तक ही सीमित थी। 

फादर कबाएरो उस दर्शन और उससे निकलने वाली शिक्षा के कटु आलोचक थे। यह एक ऐसे बौद्धिक आन्दोलन का जन्म था जिसका क्यूबा के इतिहास के लिए निर्णायक महत्व रहा। एक ऐसा आन्दोलन जो एक अन्य कैथोलिक पादरी, कबाएरो के शिष्य और राष्ट्रीय स्वतंत्रता और दास प्रथा के अन्त के लिए लड़नेवाले पहले क्यूबाई बुद्धिजीवी, फेलिक्स वरेला के साथ अपने शिखर तक पहुँचा।

यह आश्चर्यजनक है कि यह क्यूबा था, जो पुएर्तो रिको के साथ ही आखिरी बचे हुए स्पेनिश–अमरीकी उपनिवेशों में से एक था, और जहाँ इन दोनों द्वीपों पर कब्जा बरकरार रखने की कोशिश कर रही राजनीतिक व्यवस्था पर सबसे ठोस और गहन सवाल उठाने का सिलसिला शुरू हुआ। 10 अक्टूबर, 1868 में स्वतंत्रता के लिए पहले युद्ध और गम्भीर सामाजिक क्रान्ति की शुरुआत के दौरान रैडिकल सोच और दास प्रथा के नाश एवं जनसंख्या के अन्य बहिष्कृत वर्गों की मुक्ति की भावना के सम्मिश्रण ने आकार लेना शुरू किया।

एक पूर्ववर्ती लेख (लौंग मार्च ऑफ द क्यूबन रिवोल्यूशन, मन्थली रिव्यू 60, नं– 8 जनवरी 2009), में मैंने उस प्रक्रिया की उन जरूरी विशेषताओं का उल्लेख किया है जो क्यूबाई राष्ट्र के उदय और उसके मुक्ति आन्दोलन के लिए अहम रहीं। यहाँ मैं उन उदीयमान शिक्षकों और प्रोफेसरों के दल के द्वारा निभायी गयी निर्णायक भूमिका को रेखांकित करना चाहूँगा जिन्होंने न केवल अपने समय के लिहाज से कहीं अधिक विकसित सामाजिक विषय–वस्तु के साथ पितृभूमि के विचार को विकसित किया, बल्कि जिन्होंने क्यूबाई शिक्षा व्यवसाय में एक निर्बाध क्रान्तिकारी परम्परा को जन्म दिया।

बीसवीं सदी के पहले भाग के दौरान सार्वजनिक शिक्षा क्यूबाई देशभक्ति के लिए एक शरणागाह थी। लेकिन द्वीप पर अमरीकी आधिपत्य के दौरान, फिर चाहे वह प्रत्यक्ष तौर पर हो या अमरीका द्वारा प्रायोजित दमनकारी और भ्रष्ट हुकूमतों के द्वारा, यह शिक्षा ही थी जिसने क्यूबा के बेहतरीन बुद्धिजीवियों और छात्र आन्दोलनों को विरोध करने के लिए तैयार किया। वास्तव में, छात्र आन्दोलनों और क्यूबाई बुद्धिजीवियों ने स्पेनिश उपनिवेशवाद के लम्बे दौर और अमरीकी प्रभुत्व, दोनों ही के दौरान क्यूबा के राजनीतिक व सामाजिक संघर्षों में हिस्सा लिया है। इसके साथ ही साम्राज्यवाद–विरोधी समाजवादी चिन्तन के आगाज और विकास में भी योगदान दिया है।

पिछली बतिस्ता तानाशाही ने अपने कई गुनाहों में से एक यह किया कि शिक्षा के खिलाफ अत्यन्त आक्रामक रुख अपनाया। उसने स्कूलों और विश्वविद्यालयों के निजीकरण को प्रोत्साहित किया तथा सरकारी संस्थानों के खिलाफ लड़ाई छेड़कर उन्हें संसाधनों से वंचित कर दिया। यही संस्थान आगे चलकर प्रतिरोध के मुख्य केन्द्रों में तब्दील हुए। अपने प्रयासों के प्रतीक के रूप में उस तानाशाह ने, हवाना विश्वविद्यालय के 200 वर्ष पुराने भवन को एक हैलीकॉप्टर टर्मिनल में तब्दील करने के उद्देश्य से तहस–नहस कर दिया। उसकी यह योजना 1 जनवरी, 1959 को उसके मजबूरन देश छोड़कर भागने के दौरान लगभग पूरी ही हो चुकी थी। हालाँकि भागने से पहले बतिस्ता द्वारा क्यूबाई राष्ट्रीय सभ्यता के अन्य दुर्गों को भी निशाना बनाया गया था। उसकी तानाशाही ने अलीशिया अलोंसो की बैले कम्पनी को राज्य से मिलने वाला एक मामूली अनुदान भी रोक दिया। इसके चलते इस बैले संस्था की कला केवल छात्रों द्वारा प्रायोजित विश्वविद्यालय परिसर के कार्यक्रमों तक सीमित रह गयी। उस असाधारण कलाकार और उसकी कम्पनी को अमरीका चले जाना पड़ा।

शिक्षा, क्रान्तिकारी सरकार की पहली प्राथमिकता थी। सरकार के सबसे पहले कार्यों में से एक, विस्तृत छात्रवृत्ति योजना, दुर्गम इलाकों में रहनेवाले ऐसे हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा उपलब्ध कराने पर केन्द्रित थी, जिनकी विश्वविद्यालयी शिक्षा देश की राजधानी में जाकर रह सकने के संसाधनों के अभाव में बाधित हो चुकी थी। हवाना की कई बड़ी इमारतें उनके निवास के लिए इस्तेमाल में लायी गयीं। वे आलीशान कोठियाँ जो बतिस्ता के शासन के अन्त के दौर में निर्माण–कार्यों में आये उछाल की द्योतक थीं वे कोठियाँ क्यूबाई विश्वविद्यालय के दसियों–हजार छात्रों और कई अन्य छात्रवृत्ति प्राप्त विदेशी छात्रों का छात्रावास बन गयीं। 50 वर्षों बाद वे आज भी उसी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किये जा रही हैं।

उसी समय विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार के सुधारों की शुरुआत हुई। इनमें  शिक्षण और शिक्षा पद्धतियों के आधुनिकीकरण के प्रयास, पूर्व में रही विज्ञान और तकनीकी ज्ञान की कमी को दूर करने का प्रोत्साहन (उदाहरण के लिए, इस समय तक क्यूबाई अर्थशास्त्रियों में से बेहद कम लोग ही दूसरे देशों में शिक्षा प्राप्त किये थे), और देश भर में विश्वविद्यालय परिसरों का निर्माण, जिसे हम “विश्वविद्यालयों का सार्वभौमिकरण” कहते हैं, यह सब शामिल था। उन शुरुआती सालों में जब विदेशी शक्तियों द्वारा क्यूबा के विरुद्ध विद्वेष और अलगाव का तीव्र प्रसार किया जा रहा था, इन गम्भीर शैक्षणिक सुधारों को आगे बढ़ाना आसान नहीं था। गौरतलब है कि इस विदेशी आक्रामकता का परिणाम द्वीप में बे ऑफ पिग्स हमले, विध्वंसक कार्रवाई और आतंकवाद के रूप में सामने आया था।

हालाँकि, इन सबके बावजूद हमने कई सराहनीय परिणाम प्राप्त किये।

इन सब में सेंतियागो डी क्यूबा स्कूल ऑफ मेडिसिन का निर्माण उल्लेखनीय है। 1960 के दशक की शुरुआत में डॉक्टरों को केवल राजधानी में ही प्रशिक्षण दिया जा रहा था तथा उस दौरान क्रान्तिकारी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से बनाई गयी “ब्रेन ड्रेन” की बहकावे की योजना से आकर्षित होकर क्यूबा के 6000 डॉक्टरों का आधा हिस्सा अमरीका में प्रवास कर चुका था।

उन नये प्रयासों के नतीजे आज भी देखे जा सकते हैं। हर प्रान्त में कम से कम एक विश्वविद्यालय और एक मेडिसिन स्कूल है। हम एक ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था का इस्तेमाल करते हैं जो मरीजों के लिए पूरी तरह नि:शुल्क है और जिसमें सारा देश और उसके सभी निवासी शामिल हैं। दसियों हजार क्यूबाई डॉक्टर कई कैरिबियाई और लातिन अमरीकी देशों, अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं, वह भी नि:शुल्क। क्यूबा ने कई अनुसंधान केन्द्र विकसित किये हैं जिन्होंने दवाओं, टीकों और विशिष्ट उपकरणों की खोज, निर्माण एवं निर्यात के काम किये हैं। इस सन्दर्भ में इन उपलब्धियों ने इस द्वीप को तीसरी दुनिया के देशों के बीच एक अहम भूमिका प्रदान की है। यह खासतौर पर और भी उल्लेखनीय हो जाता है जब हम यह देखते हैं कि वैश्विक स्वास्थ्य सेक्टर बड़ी पूँजीवादी संस्थाओं के एकाधिकार द्वारा नियंत्रित होता है। आधी सदी तक अमरीका द्वारा थोपी गयी आर्थिक घेराबन्दी के अथक प्रयासों के बावजूद क्यूबा ने यह सब कर दिखाया है।

इस वर्ष हम क्यूबा में दो वर्षगाँठें मना रहे हैं जो एक दूसरे से नजदीकी रूप से जुड़ी हुई हैं। पचास साल पहले हमने अशिक्षा का खात्मा किया और उसी समय हमने बे ऑफ पिग्स में विजय प्राप्त की, जहाँ बहत्तर घंटों से भी कम समय में सीआईए द्वारा प्रायोजित और संचालित सैन्य आक्रमण को जबरदस्त ढंग से विफल कर दिया गया। 1961 में क्यूबाई लोगों ने दो बेमिसाल उपलब्धियाँ अर्जित कीं। क्यूबा अमरीकी महाद्वीप में अशिक्षा को मिटाने वाला और सैन्य रूप से साम्राज्यवाद को परास्त करने वाला पहला देश बना। यह विडम्बना ही है कि जिस वर्ष यूनेस्को ने यह घोषणी की कि हर एक क्यूबाई लिखना और पढ़ना सीख चुका है, उसी वर्ष अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने सैन्य आक्रमण का आदेश दे दिया जो यदि सफल हो जाता तो उसने लोगों को अज्ञानता और अशिक्षा की ओर वापस मोड़ दिया होता।

1959 में जब क्रान्ति की विजय हुई तब क्यूबाई जनसंख्या का लगभग एक–चैथाई हिस्सा पूरी तरह अशिक्षित था। कई अन्य को “व्यावहारिक रूप से अशिक्षित” समझा जाता था। इसका मतलब था कि हालाँकि वे शब्दों को पढ़ और पहचान जरूर सकते थे लेकिन उन्हें पूरी तरह समझ पाने में अक्षम थे। उस देश में यह हकीकत वाकई हैरान करने वाली थी जहाँ हजारों बेरोजगार शिक्षक मौजूद थे, फिर भी हजारों विद्यालय बिना शिक्षकों के चल रहे थे। एक ऐसा देश जहाँ ज्यादातर बच्चों का नाम किसी भी विद्यालय में नहीं लिखा गया था और जिन्होंने थोड़ी–बहुत  शिक्षा लेनी शुरू की भी थी, उनमें से ज्यादातर प्राथमिक शिक्षा भी पूरी नहीं कर सके थे। बतिस्ता शासन के द्वारा कराई गयी आखिरी जनगणना में इन बातों की पुष्टि करते आँकड़े दर्ज हैं, जाहिर है जो उस समय क्यूबा में फैल रही नाटकीय रूप से अन्यायपूर्ण सामाजिक परिस्थितियों की सुनहरी तस्वीर पेश करने में करने में ही दिलचस्पी ले रहा था। क्यूबा के साक्षरता अभियान ने लोगों की भागीदारी के सन्दर्र्भ में असाधारण आयाम पेश किये। असंख्य छात्रों ने ब्रिगेडों के रूप में संगठित होकर केवल एक लालटेन और पढ़ाने की किताब से लैस होकर सारे देश पर “धावा” बोल दिया और अपने इस नेक अभियान में वे सबसे दुर्गम इलाकों तक में घुस गये। उनमें से एक, मैनुएल असुंस को, भाड़े के सैनिकों के गिरोहों ने मार दिया और उसके शिष्य पैड्रो लांतिगुआ की भी हत्या कर दी।

अभियान को बाधित करना तो दूर, इन आपराधिक घटनाओं ने और भी ज्यादा छात्रों को साक्षरता कर्मियों के रूप में लामबंद होने के लिए प्रेरित किया। यूनियनों ने भी इसमें निर्णायक योगदान दिया। कॉनराडो बेनित्ज नामक एक कर्मी को भी मौत के घाट उतार दिया गया जब वह पहाड़ो में पढ़ना–लिखना सिखा रहा था। इन शहीदों के ये नाम क्यूबाई शिक्षा मिशन के लिए प्रिय प्रतीक बन गये।

साक्षरता कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करना कहीं अधिक व्यापक और टिकाऊ परियोजना के लिए एक पक्की नींव के समान था। इस अभियान के बाद हर एक व्यक्ति के लिए कम से कम प्राथमिक शिक्षा पूरी करने की एक लड़ाई की शुरुआत हुई। इसके अलावा बड़े स्तर पर पढ़ाई के प्रसार के लिए एक ऐसी प्रकाशन प्रणाली की स्थापना की गयी जिसने अब तक विभिन्न विषयों की करोड़ों प्रतियाँ छापी हैं, जो आश्चर्यजनक रूप से सस्ते दामों पर बेची जाती हैं। इस प्रयास की शुरुआत मिगुएल डी सर्वान्तेज की सर्वकालिक रचना द इनजीनियस जैंटलमैन डॉन क्विकजोट ऑफ ला मान्चा के प्रकाशन से हुई। आधी सदी पहले हासिल कर लिया गया यह मुकाम अभी भी संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी लक्ष्यों में से एक है, एक ऐसा मौलिक अधिकार जिससे विश्व के करोड़ों–करोड़ लोग अभी तक वंचित हैं। हमारा विश्वास है कि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम दूसरों को भी ऐसा करने में मदद करें। हमारे लिए यही अन्तरराष्ट्रीयतावाद है, जो समाजवादी आदर्शों का मूल है। क्यूबाई शिक्षकों ने पढ़ना–लिखना सिखाने के लिए “हाँ, मैं कर सकता/ती हूँ” (यो सी पुऐदो) जैसा सटीक मंत्र ईजाद किया है जिसने अन्य देशों में लाखों लोगों को अशिक्षा से छुटकारा पाने में मदद की है। यो सी पुऐदो ब्राजील में पाउलो फ्रेरे द्वारा खोजे और इस्तेमाल किये गये तरीके का उपयोग करता है तथा शिक्षा को समुदायों की जरूरतों और उपक्रमों के ईर्द–गिर्द स्वयं बुनने में मदद कर, लोगों के साथ शब्द और दुनिया दोनों को पढ़ने के लिए साथ काम करता है। अपने बुजुर्गों के साहसिक कारनामों को दुहराते हुए दसियों–हजार क्यूबाई नवयुवकों ने लातिन अमरीका, अफ्रीका और अन्य महाद्वीपों के सबसे दुर्गम इलाकों “धावा” बोल दिया है और सफल साक्षरता अभियानों के लिए निकल पड़े हैं। उदाहरण के लिए, वेनेजुएला अब आधिकारिक रूप से यूनेस्को द्वारा प्रमाणित अशिक्षा–मुक्त क्षेत्र है।

बोलिविया, निकारागुआ, हैती और इक्वाडोर जैसे देशों की जनसंख्या के महत्वपूर्ण हिस्सों तक सामान्य साक्षरता पहुँच चुकी है तथा ये देश पूरे विश्वास के साथ अज्ञानता के अभिशाप से पूरी तरह छुटकारा पाने की ओर अग्रसर हैं। यूनेस्को द्वारा प्रमाणित क्यूबाई साक्षरता योजना यो सी पुऐदो को विश्व–भर के बीस देशों में सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है। आज की तारीख तक इस योजना के ग्यारह संस्करण तैयार हो चुके हैं : स्पैनिश के लिए सात (वेनेजुएला, मैक्सिको, अर्जेंटीना, इक्वाडोर, बोलिविया और उरुग्वे के लिए) पुर्तगाली में एक, अंग्रेजी में एक, बोलिविया के लिए क्वेचुआ और आयमारा में दो, हाल ही में पूरे किये गये संस्करण और क्रियोल का एक संस्करण जिसे हैती में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा चुका है। इस अभियान के लगातार बढ़ते प्रभाव ही इसके सबसे खूबसूरत फल हैं। इस नेक और चुनौतीपूर्ण अभियान का हिस्सा केवल क्यूबाई ही नहीं हैं। आज उनके साथ वेनेजुएला, बोलिविया, हैती, इक्वाडोर और अन्य देशों के नवयुवक कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं।

कुछ ऐसा ही बड़े पैमाने पर मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा के प्रसार में भी हो रहा है। वर्षों तक दसियों–हजार क्यूबाई डॉक्टरों ने अपनी सेवाएँ लातिन अमरीका, कैरिबिया, अफ्रीका और एशिया के कई इलाकों में दी हैं। पर अब वे इस लक्ष्य को पूरा करने में अकेले नहीं हैं। हवाना के पश्चिम के निकट स्थित लातिन अमेरिकन स्कूल ऑफ मेडिसिन (ईलम) से अब तक संयुक्त राज्य अमरीका सहित कई अन्य देशों के बहुत से नवयुवक शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। कुछ ग्रेजुएट हैनरी रीवी ब्रिगेड के साथ मिलकर काम करते हैं जो क्यूबाई डॉक्टरों का एक दस्ता है जिसे कटरीना चक्रवात से हुई तबाही से निपटने के लिए बनाया गया था। हालाँकि, राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ब्रिगेड द्वारा लुसियाना के पीड़ितों की मदद करने के प्रस्ताव को नकार दिया था। अमरीकी लोगों की मदद न कर पाने के बाद हैनरी रीवी ब्रिगेड, हिमालय में भूकम्प से प्रभावित पाकिस्तानी नागरिकों की मदद को रवाना हो गयी। अभी हाल ही में वो हजारों क्यूबाई इससे जुड़े हैं, जो पिछली सदी के अन्त से ही हैती के नागरिकों को जरूरी जीवन–रक्षक सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं और जिन्होंने वहाँ एक भयावह हैजे की महामारी का लगभग खात्मा कर दिया है। हमारे डॉक्टरों को पाकिस्तान और हैती में सम्मानित किया जा चुका है तथा कई अन्तरराष्ट्रीय संस्थानों ने हमारे प्रयासों को स्वीकारा है। 

वैश्विक कॉरपोरेट मीडिया ने, खासतौर पर अमरीका में, इस बारे में बहुत कम कहा है। शायद ही कुछ अमरीकियों ने इन प्रयासों के बारे में सुना हो, जबकि क्यूबा में अपना व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करनेवाले कई अमरीकी डॉक्टरों ने इनमें हिस्सा लिया है। अमरीका में शायद ही कोई हैनरी रीवी के बारे में जानता हो, जिसके नाम पर ही इस ब्रिगेड का नाम पड़ा और जो उन्नीसवीं सदी में क्यूबाई स्वतंत्रता के लिए लड़ने और प्राण गँवाने वाला एक अमरीकी नौजवान था।

साक्षरता के क्षेत्र में हो रहे तमाम अन्तरराष्ट्रीयतावादी कार्यों के प्रति भी मीडिया कुछ ऐसी ही चुप्पी अपनाये रहा है। क्यूबाई शिक्षकों ने न्यूजीलैंड में यो सी पुऐदो पद्धति को सफलतापूर्वक लागू किया है तथा अब कनाडा में भी वे ऐसा ही कर रहे हैं। ऐसा वे उन दोनों देशों के सरकारी अधिकारियों और नागरिक समाज के साथ मिलकर करते हैं जिन्हें, कल्पना में भी, किसी भी तरह से विकासशील विश्व का नहीं कहा जा सकता। क्यूबाई क्रान्ति द्वारा विकसित शैक्षणिक कार्यों को घेराबन्दी या साफ शब्दों में कहा जाये तो, आईजनहावर प्रशासन के दिनों से छेड़े गये आर्थिक युद्ध जो ओबामा प्रशासन में भी अब तक जारी है, के कारण बहुत ही कठिन परिस्थितियों में पूरा किया गया। हमें यह याद रखना चाहिए कि यह आर्थिक युद्ध शुरुआत से ही एक खास नरसंहार के रूप में सोचा गया था, क्योंकि इसका उद्देश्य हमेशा से क्यूबाई लोगों को नुकसान पहुँचाना ही रहा है। सरकारी भाषा में लिखे गये अमरीकी सरकार के कुछ खुफिया दस्तावेजों में जिन्हें बाद में प्रकाशित किया गया, इस बात का उल्लेख है कि इस नीति का उद्देश्य “आर्थिक असन्तोष और कठिनाइयों पर आधारित मोहभंग और निराशा पैदा करना––– और क्यूबा को मुद्रा और सामग्रियों से वंचित कर, वित्तीय और वास्तविक आय को कम करना, भुखमरी और असन्तोष बढ़ाकर सरकार को उखाड़ फेंकना है।” (ऑफिस ऑफ द हिस्टोरियन, ब्यूरो ऑफ पब्लिक अफेयर्स, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट्स जॉन पी, ग्लेनन फॉरेन रिलेशन्स ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स, 1958–1960, वॉल्यूम 6, क्यूबा वॉशिंगटन डी सी)

ऐसी चुनौती का सामना कर आखिर हम कैसे शिक्षा सेवाओं का प्रसार करें? कैसे हम विद्यालयों, प्रयोगशालाओं, और पुस्तकालयों की संख्या बढ़ाएँ? कैसे हम जरूरी उपकरणों और सामग्रियों की उपलब्धता सुनिश्चित करें?

क्यूबाइयों के लिए किसी भी अन्य राष्ट्र के लोगों की अपेक्षा यह कीमत काफी ज्यादा रही है। अमरीकी बाजार तक पहुँच पर प्रतिबन्ध के कारण निर्माण कार्यों, रख–रखाव और शिक्षा की सुविधाओं के लिए जरूरी आयातों को दूरस्थ बाजारों में ढूँढना पड़ता है, जिससे क्यूबाइयों को यातायात और ढुलाई की अतिरिक्त कीमत देने की मुसीबत उठानी पड़ती है। यह कीमतें तथाकथित क्यूबा रिस्क क्लॉज के कारण और भी अधिक बढ़ जाती हैं। यह वह प्रतिबन्धात्मक (दण्डात्मक) कीमत है जिसे वॉशिंगटन द्वारा उन विदेशी कम्पनियों पर थोपा जाता है जो द्वीप के साथ व्यापार करती हैं। हम क्यूबाइयों को किसी भी अन्य देश द्वारा बनाये गये समान उत्पादों के लिए उनकी कीमत से ज्यादा मूल्य चुकाना पड़ता है। उस पर भी हमें एक और खतरे का सामना करना होता है : किसी भी समय एक अन्तरराष्ट्रीय व्यापार समझौते को रद्द किया जा सकता है, यदि उस सामान के उत्पादन या विपणन से जुड़े कारकों में से किसी को भी किसी अमेरीकी कम्पनी द्वारा खरीद लिये जाये। हमने कई वर्षों में कई बार इस अनुभव को जिया है।

इन सबके बावजूद क्यूबा सभी को शिक्षा और सभ्यता पहुँचाने के अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ रहा है। 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन तथा टॉरिसैली (1992) और हैम्सबर्टन (1996) नियमों के द्वारा अमेरीकी प्रतिबन्ध के और कठोर हो जाने के कारण देश को गहरे अर्थव्यवस्था संकट से गुजरना पड़ा, उसके बाद भी हमने कई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं।

खास तौर पर उन कठिन सालों में सरकारी सहयोग प्राप्त उपक्रमों ने काफी प्रगति की। चूँकि इन्हें शिक्षा पेशे से जुड़े लोगों और विद्वान वर्ग का प्रोत्साहन प्राप्त होता रहा इसलिए इन परियोजनाओं में लगातार समृद्धि हुई। हम यह जोर देकर कहते हैं कि विभिन्न कलात्मक और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को रोजमर्रा के जीवन में शामिल कर, कला प्रशिक्षक अभियान ने देश के विभिन्न समुदायों में जीवन का पुन: संचार किया है। 

हर साल हवाना द्वारा लातिन अमरीका और अन्य इलाकों से हजारों विशेषज्ञों और पेशेवरों को आमंत्रित किया जाता है, विश्व–भर में विश्वविद्यालयों और शिक्षा द्वारा महसूस की जा रही समस्याओं और चुनौतियों पर विचार–विमर्श किया जाता है। पुस्तक मेले, जिनकी बीसवीं वर्षगाँठ हाल ही में सम्पन्न हुई है, समूचे क्यूबाई भू–भाग में फैल जाते हैं। इनमें लाखों लोग हिस्सा लेते हैं तथा किताबों को सस्ते दामों में खरीदकर तथा कलाकारों और लेखकों से मिलकर बातचीत कर सकते हैं।

क्यूबा के पाँच राष्ट्रीय चैनलों में से दो चैनल शिक्षा को समर्पित हैं। जन–साधारण में प्रसार के लिए प्रकाशित सामग्रियों की मदद से लाखों लोगों के पास सीखने के लिए विषयों का एक विस्तृत दायरा है जिनमें इतिहास, अर्थशास्त्र, भूगोल, विज्ञान, साहित्य, दृश्य कलाएँ (विजुअल आर्ट्स), संगीत और विदेशी भाषाएँ शामिल हैं।

फादर कबाएरो ने एक ऐसे क्यूबा का स्वप्न देखने का साहस किया था जहाँ शिक्षा एक साझी विरासत होगी जिससे कोई भी अछूता नहीं रहेगा, और तब से अब तक हम एक बहुत लम्बा और घटनाओं से परिपूर्ण रास्ता तय कर चुके हैं। आज क्यूबा का समाज चिन्तन के ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ हम सब खुले और लोकतांत्रिक तरीके से यह विचार कर रहे हैं कि जिन कामों के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, उन शानदार कामों को हम कैसे सहेजे रख सकते हैं। हम अपनी समाजवादी परियोजना को बचाये रखने की कोशिश कर रहे हैं, वह समाजवाद से जुड़ा है जो एक चैतरफा घिरे देश में और भीषण संकट से गुजर रही एक ऐसी दुनिया जहाँ मानव अस्तित्त्व खतरे में है, में आज भी बरकरार है।

यह राष्ट्रीय चर्चा अप्रैल 2011 में हुए छठे कम्युनिस्ट पार्टी अधिवेशन में विचार का अहम हिस्सा रही। यह ऐसी चर्चा है जिसमें हरेक क्यूबाई ने हिस्सा लिया। जैसा कि कॉमरेड फिदेल कास्त्रो ने उस अवसर पर कई बार यह उद्घोषित किया कि हमें “बदलना होगा हर उस चीज को जिसे बदलने की जरूरत हो।” इसमें कोई संदेह न रहे। भविष्य में क्यूबा को आगे बढ़ना होगा, शिक्षा को अपने सबसे कीमती रत्न की तरह सँजोकर–– सभी के लिए समान शिक्षा, श्रेष्ठ शिक्षा देश की आजादी का आधार और मार्गदर्शक बनी रहेगी।

 

क्यूबाई चिकित्सा अभियान

--डॉन फिट्ज

2014 में इबोला वायरस जब उत्तरी अफ्रीका में फैलना शुरू हुआ तो दुनिया की एक बड़ी आबादी आशंकाओं से घिर उठी। कुछ ही समय में लगभग 20,000 से अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके थे। 8,000 से ज्यादा लोग मारे गये तथा चिन्ताएँ बढ़ने लगी कि मौतों का यह आँकड़ा बढ़कर लाखों में न पहुँच जाये। जहाँ संयुक्त राज्य अमरिका ने सैन्य सहायता प्रदान की, वहीं दूसरे देशों ने आर्थिक मदद का आश्वासन दिया। क्यूबा वह पहला देश था जिसने सहायता में वह चीज मुहैया की जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी : उसने 103 नर्सों और 62 चिकित्सकों के स्वयंसेवक–दल को सियरा लियोन की ओर रवाना किया। हाँलाकि सियरा लियोन में लगभग दो दर्जन क्यूबाई चिकित्सा कर्मी पहले से मौजूद थे और पूरे अफ्रीका में क्यूबा के कुल 4,000 चिकित्सा कर्मी (2,400 चिकित्सकों सहित) पहले से ही अपनी सेवा दे रहे थे। इस रूप में क्यूबा इस चुनौती से निपटने को तैयार था। मामले के आरम्भिक विश्लेषण के बाद क्यूबा ने अन्य 296 कर्मियों को गिनी और लाइबेरिया भेजा। चूँकि कई सरकारें यह नहीं जानती थीं कि इबोला से कैसे निपटना है, इसलिए हवाना के पैड्रो कूरी उष्णकटिबंधीय चिकित्सा संस्थान में अन्य देशों के स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया गया। कुल मिलाकर क्यूबा ने 13,000 अफ्रीकियों, 66,000 लातिन अमरीकियों एवं 620 कैरिबियाई स्वयंसेवकों को संक्रमित हुए बिना इबोला का उपचार करने की ट्रेनिंग दी। यह पहला मौका था जब बहुत से लोगों के मन में क्यूबा के आपात सहायता दलों के बारे में जानने की उत्सुकता जाग उठी।

इबोला का अनुभव जॉन कर्क की नयी किताब हैल्थकेयर विदाउट बॉडर्स : अंडरस्टैंडिंग क्यूबन मेडिकल इंटरनेश्नलिज्म (बिना सरहदों के स्वास्थ्य सुविधाएँ क्यूबाई चिकित्सीय अन्तरराष्ट्रीयतावाद पर एक नजर) में उल्लिखित कई अनुभवों में से एक है। यह 2009 में माइकल एरिसमैन के साथ मिलकर लिखी गयी उनकी दूसरी पुस्तक क्यूबन मेडिकल इंटरनेश्नलिज्म : ओरिजिन्स, इवोल्यूशन एण्ड गोल्स (क्यूबाई चिकित्सीय अन्तरराष्ट्रीयतावाद उत्पत्ति, विकास एवं उद्देश्य) से काफी अलग मुद्दों पर केन्द्रित है। जहाँ यह किताब विश्व भर में क्यूबा की चिकित्सा सम्बन्धी भागीदारी के राजनीतिक इतिहास पर एक निर्णायक अध्ययन है, वहीं दूसरी ओर, हैल्थकेयर विदाउट बॉडर्स क्यूबा की अन्तरराष्ट्रीय चिकित्सीय सहभागिता की राजनीति पर केन्द्रित होने के साथ ही, उसकी योजनाओं के हालिया विस्तार की नवीन जानकारियाँ उपलब्ध कराती है।

क्यूबा को संयुक्त राज्य अमरीका सहित अन्य देशों की सरकारों और चिकित्सा समितियों की ओर से हमेशा तीखे विरोध का सामना करना पड़ा है, जोकि अन्तरराष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति के विकास में उसकी सबसे बड़ी चुनौती रहा है। एक मनोवैज्ञानिक के तौर पर, क्यूबा के मानवतावाद पर किये गये इन कई प्रहारों को समाविष्ट करने के लिए मैं “निग्लैक्ट प्रोजेक्शन (उपेक्षा का मंसूबा)” शब्द का इस्तेमाल करना चाहूँगा। “प्रोजेक्शन” मंसूबा थोपना से आशय ऐसे लोगों से है जो अपने के अस्वीकार्य विचारों या लालसाओं को दूसरों के मत्थे मढ़ते हैं। इस तरह किसी देश की सरकार द्वारा अपने निन्दनीय कामों को किसी अन्य सरकार के मत्थे मढ़ना राजनीतिक मंसूबा कहलाएगा। क्यूबा के खिलाफ चिकित्सीय उपेक्षा के मंसूबे कई प्रकार के हैं। कई लातिन अमरीकी देशों में चिकित्सा समितियों ने क्यूबाई डॉक्टरों के प्रति जबरदस्त बैर–भाव प्रदर्शित किया है। वे उन पर अपने देशों के डॉक्टरों से रोजगार छीनने, दूसरे देशों में केवल प्रचार करने के मकसद से आने योग्यता की कमी और इलाज के बाद जरूरी पर्याप्त सेवाएँ प्रदान न करने का आरोप लगाते हैं।

ब्राजील और वेनेजुएला में डॉक्टरों से रोजगार छीनने का यह आरोप केवल इस तथ्य से गलत सिद्ध हो जाता है कि क्यूबाई डॉक्टरों का दल उन गरीब और ग्रामीण इलाकों में जाकर इलाज करता है जहाँ उन देशों के डॉक्टर काम करने से कतराते हैं। 2003 में शावेज सरकार ने गरीब और कामकाजी–वर्ग को सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पहला ‘बैरियो अदैंत्रो’ (सामुदायिक सेवा) कार्यक्रम शुरू किया। इसमें हिस्सा लेने के लिए वेनेजुएला के डॉक्टरों से अपील की गयी, जिसमें केवल 50 डॉक्टरों ने ही स्वेच्छा से योगदान दिया। इस निराशाजनक स्थिति का ही नतीजा था कि क्यूबा को साल के अन्त तक अपने लगभग 9,000 चिकित्सा कर्मियों को रवाना करना पड़ा। बैरियो अदैंत्रो के शुरू होने के बाद, वेनेजुएला के चिकित्सा संघ (एफएमवी) ने क्यूबाई डॉक्टरों को निकाल देने की माँग की, इसका एक कारण यह भी बताया गया कि क्यूबाई डॉक्टरों पर वामपंथी प्रचार करने के आरोप लगे थे। जबकि मामला उलटा है। जहाँ एफएमवी जबरदस्त तरीके से राजनीतिक रंग में रंगी है, वहीं उसके ठीक उलट, क्यूबाई डॉक्टरों को प्रशिक्षण के दौरान ही सिखाया जाता है कि वे उस देश की राजनीति में कतई शामिल न हों, जहाँ वे अपनी सेवाएँ दे रहे हों। यह उन देशों के साथ होनेवाले चिकित्सा समझौतों के लिए तो और भी अहम शर्त है, जहाँ वेनेजुएला की तरह नहीं बल्कि उससे अलग तरह की कोई दक्षिणपंथी सरकार होने के साथ ही दक्षिणपंथी डॉक्टर भी मौजूद हों।

कोस्टा रिका और चिली की चिकित्सा समितियों का आरोप है कि क्यूबा में डॉक्टरी प्रशिक्षण प्राप्त करनेवाले विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं में कम अंक अर्जित करते हैं। यह बात क्यूबाई चिकित्सीय शिक्षा के ग्रामीण इलाकों में सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाएँ पारिवारिक चिकित्सा और आपदा प्रबन्धन पर दिये जानेवाले खासे जोर की अनदेखा करती है। कर्क लिखते हैं कि एक सवाल जो क्यूबाई डॉक्टर अक्सर अपने विद्यार्थियों से पूछा करते हैं, वह यह है : “यदि आप अमेजन के बीचों–बीच कहीं काम कर रहे हों, जहाँ किसी जाँच परीक्षण तक पहुँच सम्भव न हो, तो आप क्या करेंगे और किस तरह से जाँच करेंगे?” क्यूबाई डॉक्टर 80 प्रतिशत से अधिक चिकित्सीय समस्याओं की जाँच, निरीक्षण और बीमारियों के इतिहास के गहन अध्ययन से करने की कोशिश करते हैं। सभी जानते हैं कि क्यूबाई प्रणाली ने शिशु मृत्यु दर को कम करने तथा स्वास्थ्य के अन्य सूचकों को सुधारने में दूसरों से कहीं ज्यादा बेहतर काम किया है, इस तथ्य को देखते हुए यह पूछने के बजाय कि क्यूबा में प्रशिक्षण पाये विद्यार्थी अन्य देशों में होने वाली परीक्षाओं में कैसा प्रदर्शन करते हैं, यह पूछना ज्यादा बेहतर होगा कि कोस्टा रिका और चिली के चिकित्सा संस्थान क्यूबा में होने वाली परीक्षाओं में कैसा प्रदर्शन करेंगे।

क्यूबाई डॉक्टरों पर लगाया गया सबसे बेबुनियाद आरोप शायद यह रहा है कि बैरिओ अदैंत्रो में काम करनेवाले नेत्र चिकित्सक ऑपरेशन के बाद आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए मौजूद न रहकर मरीजों को जोखिम में डालते हैं, जबकि सच तो यह है कि क्यूबाई डॉक्टर बीमारों के बीच उन सभी लोगों से कहीं अधिक टिकते हैं, जिनका यह आरोप है। यहाँ तक कि अपने घर आने–जाने की सूरत में भी उनके लौटने तक, द्वीप से अन्य नेत्र–चिकित्सक आकर उनकी जगह ले लेते हैं।

उपेक्षा के मंसूबे का एक खास किस्म बाढ़, भूकम्प, चक्रवात, सूनामी, ज्वालामुखी फटने, महामारियों और चेर्नाेबिल जैसी परमाणु दुर्घटनाओं के लिए क्यूबाई आपात सहायता दल की महत्ता की उपेक्षा या उसे कमतर आँकना रही है। दर्जनों जीवन–रक्षक हस्तक्षेपों के बावजूद भी ये कहानियाँ कॉरपोरेट मीडिया में कभी–कभार ही दिखाई देती हैं। कई अमरीकियों को तो क्यूबा के आपदा अभियानों का पता ही  पहली बार, 2005 में केटरीना चक्रवात के बाद छपी उन खबरों को देखकर चला, जिनमें हवाना से न्यू ऑर्लीन्स जाने का इन्तजार कर रहे 1,586 डॉक्टरों की तस्वीर थी। राष्ट्रपति बुश ने न केवल उनका सहायता का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया बल्कि जब यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता शॉन मैककॉरमैक ने आपदा के दौरान सहायता की पेशकश करनेवाले पचास देशों और संगठनों के प्रति धन्यवाद प्रकट किया, तो क्यूबा का नाम उस सूची में नहीं रखा।

इसके 5 वर्ष बाद, हैती ने देश में आये विनाशकारी भूकम्प के दौरान क्यूबा की सहायता स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं किया। चूँकि क्यूबा के बहुत से चिकित्साकर्मी 1998 से ही हैती में काम कर रहे थे इसलिए सहायता का सबसे अहम प्रबंधक क्यूबा ही था। इन सालों के दौरान, 6,000 क्यूबाइयों के चिकित्सा दल ने तीस लाख से ज्यादा हैतीवासियों का उपचार किया। हैती में क्यूबा ने पहले भी आपदा के दौरान सहयोग किया था। 2004 में वहाँ आयी भीषण बाढ़ के दौरान क्यूबा ने एक चिकित्सा ब्रिगेड भेजी थी। 2010 में भूकम्प आने के एक महीने के भीतर ही, कई विदेशी आपात सहायता टीमें वापस जा चुकी थीं, लेकिन क्यूबाई चिकित्सा संस्थानों से प्रशिक्षित 600 क्यूबाई और 380 हैतीवासी वहीं डटे रहे। अक्टूबर 2010 में हैती को लगभग एक सदी बाद पहली बार हैजे का प्रकोप झेलना पड़ा। यदि क्यूबा ने किसी देश में आपदा राहत के शुरुआती दौर के बाद भी उपस्थित रहने की अपनी आदत छोड़ दी होती या यदि उसने हैतीवासियों को हैजे की रोकथाम के तरीके न सिखाये होते तो हैजे से हुई मौतों के आँकड़े बहुत बढ़ गये होते।

हालाँकि क्यूबा भूकम्प आने से पहले ही हैती में मौजूद था, आपदा के दौरान उसने सबसे तेज और सबसे पेशेवर ढंग से आपात सहायता प्रदान की और भूकम्प के बाद भी लम्बे समय तक हैती में रूका रहा, इसके बावजूद स्पेन के प्रमुख अखबार एल पाइस ने सहायता प्रदान करनेवाले देशों की सूची से ही क्यूबा का नाम मिटा दिया। संयुक्त राज्य अमरीका में, 2012 में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा किये गये अध्ययन में भी क्यूबा की भागीदारी का जिक्र नहीं किया गया। फॉक्स न्यूज ने तो सहायता करने में नाकाम होने का आश्चर्यजनक दावा करते हुए क्यूबा की कड़ी निंदा की। इस दौरान हैती में पहुँचे 22,000 अमरीकियों में से लगभग सभी सैनिक थे। अमरिकी डॉक्टर न केवल देर से हैती पहुँचे बल्कि वे क्यूबाई डॉक्टरों से काफ़ी पहले ही वापस भी चले गये। वे उन जगहों में भी नहीं रुके जहाँ पीड़ित हैतीवासी एकत्रित थे। काम के घंटे पूरे हो जाने के बाद, वे आरामदायक होटलों की ओर लौट जाया करते, जबकि क्यूबाई डॉक्टर उन हैती वासियों के बीच में ही रहते जिनका वे इलाज करते। गरीब देशों में चिकित्सा के संकट के प्रति कई अमीर राष्ट्रों का रवैया समझाने के लिए कर्क ने “आपदा पर्यटन” शब्द का इस्तेमाल किया है। वह लिखते हैं कि कई लोग आपदाग्रस्त इलाकों में “प्रभावितों को उपयोगी सहायता प्रदान करने के बजाय केवल एक ‘अनुभव’ प्राप्त करने के लिए” जाते हैं। कई तो गम्भीर राहत कार्यों में केवल व्यवधान ही पैदा करते हैं। वहीं क्यूबाई डॉक्टरों का रवैया आपदा पर्यटन से एकदम अलग होता है। वे गरीब देशों में पहले काम कर चुके हजारों चिकित्सक दलों के अनुभवों को आधार बनाकर कार्य करते हैं। क्यूबाई प्रतिक्रिया दल (रिस्पॉन्स टीम) और प्रतिस्थापना कर्मचारी (रिप्लेसमेंट स्टाफ) प्रभावित देशों में महीनों या वर्षों रहकर, सामुदायिक चिकित्सा और सुरक्षात्मक स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास करने में मदद करते हैं।

कई मायनों में वेनेजुएला, क्यूबाई हस्तक्षेप का एक आदर्श रूप है। इसकी शुरुआत ह्यूगो शावेज के राष्ट्रपति बनने के एक साल बाद, 1999 में आयी बाढ़ के दौरान दी गयी क्यूबाई मदद से हुई। वेनेजुएला के दक्षिणपंथियों के व्यापक विरोध के बीच, वर्ष 2000 में पहले चिकित्सा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर हुए। जैसे–जैसे वेनेजुएला में प्रति 1000 नवजात शिशु–मृत्यु दर, 1990 के 25 से घटकर 2010 में 13 हो गयी, तो धीरे–धीरे यह विरोध भी काफी कम हो गया। बड़ी संख्या में वेनेजुएला के लोगों का क्यूबाई या क्यूबा में प्रशिक्षित चिकित्सकों द्वारा इलाज किया गया। पर हालिया वर्षों में जो सबसे बड़ा बदलाव देखने को मिला है, वह यह है कि पहले क्यूबा द्वारा दी जाने वाली सेवाओं और प्रशिक्षण का भार अब वेनेजुएला ने काफी हद तक अपने ऊपर ले लिया है।         

लगभग 30 लाख लोगों की दृष्टि वापस लौटाने के लिए मशहूर ऑपरेसियोन मिलाग्रो (ऑपरेशन मिरेकल) की शुरुआत एक संयोग से हुई थी। 2004 में 80 लाख लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से वेनेजुएला और क्यूबा द्वारा एक सम्मिलित कार्यक्रम शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान यह महसूस किया गया कि उनमें से अधिकाँश लोगों के ना पढ़ पाने का एक बड़ा कारण, उनकी नजर का कमजोर होना था। वेनेजुएला और सारे लातिन अमरीका से लोग आँखों के इलाज के लिए हवाना आने लगे। कार्यक्रम के अगले चरण में क्यूबा ने वेनेजुएला और बोलिविया के डॉक्टरों को आँखों की सर्जरी के लिए प्रशिक्षित किया ताकि वे अपने और पड़ोसी देशों के लोगों का उपचार कर सकें। बेहद कम खर्च में इतने प्रभावशाली ढंग से लोगों की जिंदगियाँ बेहतर बनाने के लिए ऑपरेशन मिरेकल की बहुत सराहना की गयी है। लातिन अमरीका में होने वाली दृष्टिहीनता में से ज्यादातर को रोका जा सकता हैए जोकि अक्सर ख़राब जीवन परिस्थितियों जैसे दूषित पानी, कुपोषण और अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण होती है। गरीब देश में दृष्टिहीन होना किसी अमीर देश की तुलना में कहीं ज्यादा बुरा है : परिवारों के पास अंधे रिश्तेदारों पर खर्च करने के लिए कम संसाधन होते हैंए जिससे वे परिवार पर बोझ बनकर रह जाते हैं और सामान्य आबादी की तुलना में उनकी जीवन–प्रत्याशा आधी रह जाती है।

हैल्थकेयर विदाउट बॉडर्स अंधेपन की समस्या को विकलांगता पर की गयी अपनी तरह की इस पहली गम्भीर तहकीकात से जोड़ता है। पारिवार पर एक बोझ होने के कारण ही विकलांगों (डिसकैपेसिटाडोस) को अक्सर कम महत्ववाले (माइनसवालिडोस) की संज्ञा दी जाती है। विकलांगों की जरूरतों को पूरा करना अमरीका में सामान्य (रूटीन) प्रतीत हो सकता है, पर आर्थिक रूप से कमजोर देशों में यह बिल्कुल असामान्य है। लातिन अमरीका के लाखों गरीब लोग क्यूबाई लोगों को अपनी सरकारों के साथ मिलकर उनकी जरूरतों को पूरा करते देखकर हैरान थे। कुछ तक तो हैलीकॉप्टरों से, गधों पर बैठकर या डोंगियों से जाकर पहुँचा जा सका। बोलिविया में, 101 सर्वेक्षित समुदाय तो इतनी दुर्गम जगहों पर स्थित थे कि वे किसी नक्शे पर भी नहीं पाये गये। 2013 तक सर्वेक्षित किये गये लोगों में से क्यूबा, वेनेजुएला, इक्वाडोर, निकारागुआ, बोलिविया, सेंट विन्सेंट और ग्रेनेडा के लाखों लोगों को व्हीलचेयर, वॉकर, श्रवण यंत्र, और कृत्रिम अंगों जैसी जरूरी सहायता मुहैया की जा चुकी थीं।

हालाँकि कर्क द्वारा लिखी गयी ज्यादातर बातें क्यूबा के चिकित्सीय अन्तरराष्ट्रीयतावाद के जाने–पहचाने प्रसंगों के कुछ नये मोड़ों का ही जिक्र करती हैं, इसके साथ ही बहुत से पाठकों के लिए अनजान वह चेर्नोबिल और दक्षिणी प्रशान्त जैसे इलाकों पर भी रोशनी डालते हैं। सोवियत संघ के विघटन से कुछ ही साल पहले 26 अप्रैल, 1986 में हुई चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना में क्यूबा को अपने मानवतावाद की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। इस घटना के दौरान क्यूबा ने 25,000 यूक्रेनियों की मदद के लिए, जिनमें अधिकांशत: बच्चे थे, अपने दरवाजे, अस्पताल और ग्रीष्मकालीन कैंप खोल दिये थे। बहुत से लोगों को गम्भीर चोटें या लम्बी चलने वाली बीमारियाँ थी। कुछ लोग तो क्यूबाई अस्पतालों में महीनों या सालों तक रहे। अक्टूबर 2011 में यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने क्यूबा का आभार जताते हुए उपचार के पूरे खर्च का भुगतान करने का वायदा किया, पर ऐसा नहीं हुआ। केवल दवाइयों की कीमत ही लगभग 35 करोड़ डॉलर आँकी गयी थी।

दक्षिणी प्रशान्त महासागर के द्वीपीय देशों से क्यूबा को न कोई रणनीतिक लाभ, न व्यापार, और न ही निवेश की कोई सुविधाएँ मिलती हैं। इसके बावजूद क्यूबा ने सैकड़ों चिकित्सा दलों को उन इलाकों में भेजा है और साथ ही वहाँ के सैकड़ों विद्यार्थियों को हवाना में डॉक्टरी प्रशिक्षण दिया है। क्यूबा ने तिमोर लेस्ते में एक छोटा चिकित्सा विद्यालय खोलने में मदद की, जहाँ प्रशान्त महासागर के अन्य द्वीपीय देशों के लिए चिकित्सकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। क्यूबाई चिकित्सकों में आधी महिलाएँ हैं, जावा जैसे देशों के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है, जहाँ मुस्लिम महिलाएँ किसी पुरुष चिकित्सक से जाँच करवाने में कतराती हैं।

क्यूबा के चिकित्सीय जैव–प्रौद्योगिकी पर शोध की कर्क की कहानी वह अध्याय है जो मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करता है (हालाँकि, कईयों को यह परेशान भी कर सकती है)। सेंट लुइस का नागरिक होने के नाते, जो वास्तविकता में मोन्सैंटो का एक बागान है, मैंने कम्पनी के वैश्विक मुख्यालयों, गोष्ठियों, और सम्मेलनों में प्रदर्शनों का आयोजन करने के साथ ही उनमें हिस्सा भी लिया है। वैश्विक संस्थाओं द्वारा जैव–प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की तुलना क्यूबा की जैव–प्रौद्योगिकी के साथ करना यह जानने के लिए जरूरी है, कि वे सामान्य रूप से एक ही हैं या बुनियादी रूप से भिन्न हैं।

तकनीके जब प्रचलन में आती हैं तो उनके कई तरह के प्रभाव होते हैं। जैसे एन्टीबायोटिक सकारात्मक हैं, चाहे उनका आखिरी उद्देश्य केवल कम्पनी के लिए मुनाफा कमाना है। पर कुछ अन्य तकनीकें संगठित श्रम को कमजोर करती हैं। इसका एक बेहतरीन उदाहरण है 1880 के दशक के मध्य में शिकागो के मैककॉरमिक विनिर्माण कारखाने में नयी ढलाई (मोल्डिंग) मशीन का इस्तेमाल किया जाना। इस मशीन को अकुशल मजदूर भी चला सकते थे, जिन्होंने तुरन्त ही लोहा ढालनेवाले मजदूरों की राष्ट्रीय यूनियन के कुशल मजदूरों की जगह ले ली। आज भी कई अन्य तकनीकें छोटे प्रतिस्पर्धियों को तबाह करती हैं ताकि बड़ी कम्पनियाँ बाजार को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकें। इसका खेती में इस्तेमाल किये जानेवाले जीनान्तरित बीजों (जीएमओ) से ज्यादा स्पष्ट उदाहरण और कुछ नहीं हो सकता। बाजार पर नियंत्रण (जीएमओ बीजों के विकल्पों को खत्म कर) भय (विरोध करनेवाले किसानों पर मुकदमें) और कीटनाशकों की आदत के दुश्चक्र का फायदा उठाने जैसे तरीकों से मोन्सैंटो जैसे जीएमओ के बड़े उत्पादकों ने खाद्य उत्पादन की लागत बढ़ा दी है। इससे दुनिया के छोटे किसानों के आगे रोजगार का संकट आ खड़ा हुआ है, जबकि बड़े किसानों को इसने, इन बीज और कीटनाशकों के बहुराष्ट्रीय प्रभुओं का पिट्ठू बना दिया है।

नयी तकनीकों के इस्तेमाल से बाजार पर नियंत्रण बढ़ाने और श्रम पर चोट करने के लिए, पूँजी कम गुणवत्तावाले उत्पादों का निर्माण करने को भी तैयार है। मैककॉरमिक ने उपभोक्ताओं को महँगे पड़नेवाले खराब गुणवत्ता के साँचों का उत्पादन करने वाली ढलाई मशीनों का इस्तेमाल किया, क्योंकि वे यूनियन के खिलाफ एक असरदार हथियार थीं। ठीक इसी तरह, खेती में इस्तेमाल किये जानेवाले जीनान्तरित (जीएमओ) बीज कम गुणवत्ता के खाद्यों का उत्पादन करते हैं। चूँकि दो–तिहाई जीनान्तरित बीजों को इस तरह तैयार किया जाता है कि उनसे उगनेवाले पौधे राउन्डअप जैसे जहरीले कीटनाशकों को बर्दाश्त कर सकें, जीएमओ के बढ़ते उपयोग के साथ ही कीटनाशकों के अवशिष्ट का स्तर भी बढ़ता जाता है। मोटापे के संकट में योगदान देते हुए, लगातार बढ़ती तादाद में संसाधित खाद्यों को मीठा करने में इस्तेमाल होनेवाले अनाज शरबत (कॉर्न सिरप) का उत्पादन बढ़ाने में जीएमओ का इस्तेमाल होता है। इसी तरह से यातायात की अवधि के दौरान लम्बे समय तक सुरक्षित और टिकाऊ बनाये रखने के लिए निर्मित खाद्य (यूनिफॉर्म फूड) भी कम पौष्टिकता लिए होते हैं। लोगों के मोटापे के बावजूद अल्पपोषित होने की परिघटना के लिए कारपोरेट खेती में जीएमओ का इस्तेमाल ही इसके सबसे बड़े कारकों में से एक है।

कारपोरेट खेती में इन नयी तकनीकों के विनाशकारी प्रभावों की तुलना क्यूबा द्वारा दवाओं में जैव–प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के साथ किस तरह की जा सकती है? कर्क बेहद प्रभावशाली तर्क देकर कहते हैं कि क्यूबा ने नयी दवाओं का निर्माण किया है जिनसे लोगों की जिन्दगियाँ बेहतर हुई हैं। इसके साथ ही उसने अपनी जैव–प्रौद्योगिकी को अन्य देशों के साथ उन्हें समर्थ बनाने के लिए साझा किया है, न कि उन्हें कमजोर करने के लिए। क्यूबाई प्रयोगशालाओं में विकसित की गयी दवाओं की सूची का एक छोटा सा हिस्सा भी बहुत प्रभावशाली जान पड़ता है। डायबिटीज के उपचार में हेबरप्रोट बी के इस्तेमाल ने किसी अंग को काटकर अलग करने के मामलों को 80 प्रतिशत तक कम कर दिया है। क्यूबा, टाइप–बी, मेनिनजाईटिस (जीवाणु सम्बन्धी ज्वर) के लिए एक कारगर टीका विकसित करने वाला एकमात्र देश है। इसके साथ ही उसने लगभग आधे संक्रामक जुकामों (फ्लू इंफेक्शनों) में पाये जानेवाले हीमोफाईलस इंफ्लूएँजा (जुकाम) टाइप बी यपइद्ध के लिए भी पहला कृत्रिम टीका विकसित किया है। क्यूबा ने तेजी से बढ़ रहे फेफड़ों के कैंसर के लिए राकोटूमोमाब यत्ंबवजनउवउंइद्ध नामक टीका निर्मित करने के साथ ही सोराइसिस से लड़ने के लिए इटोलीजुमाब यप्जवसप्रनउंइद्ध के रोग–विषयक परीक्षण भी शुरू कर दिये हैं। 

क्यूबा की सरकार के पास इन सभी और ऐसे कई अन्य नयी चिकित्सीय खोजों पेटेंट हैं। उपभोक्ताओं से मनमाने पैसे वसूल कर ज्यादा मुनाफ़ा कमाने पर कोई जोर न होने के कारण क्यूबाई नागरिकों को बाजार पर आधारित अमरीका जैसी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के मुकाबले ये दवाएँ काफी कम कीमत में उपलब्ध हो जाती हैं। इसने क्यूबा के चिकित्सीय अन्तरराष्ट्रीयतावाद पर गहरा असर डाला है जिससे यह देश, अन्य देशों में मानवातावादी अभियानों को और आसान बनाने के लिए सस्ते दामों पर टीके और दवाइयाँ उपलब्ध करा सकता है। मेनिंनजाइटिस और निमोनिया के लिए कृत्रिम टीकों के इस्तेमाल ने लाखों लातिन अमरीकी बच्चों के टीकाकरण को सफल बनाया है।

क्यूबा की चिकीत्सीय जैव–प्रौद्योगिकी का दूसरा चरण भी कॉरपोरेट जगत के लिए अनजाना है। यह है गरीब देशों को नयी तकनीकों का हस्तान्तरण, जिससे वे स्वयं इन दवाओं का उत्पादन कर सकें। ब्राजील के साथ सहयोग के बाद मेंनिनजाइटिस के टीके की कीमत 15 से 20 प्रति डोज की बजाय 95  प्रति डोज हो गयी है। क्यूबा और ब्राजील हैपेटाइटिस सी के लिए इंटरफेरॉन अल्फा 2बी और किडनी की पुरानी बीमारी से होनेवाले अनीमिया के लिए रीकॉम्बिनैंट ह्यूमन ऐरिथ्रोपोलेटिन सहित कई अन्य जैव–प्रौद्योगिकी योजनाओं पर साथ काम कर रहे हैं।

कर्क का व्याख्यान क्यूबा द्वारा पेरू को चूहों को मारकर प्लेग से लड़ने के लिए भेजे गये बायोरैट जैसे कीट–विरोधी विषों तक सीमित है। बायोरैट इसलिए सुरक्षित माना जाता है क्योंकि यह विखण्डित होकर नष्ट हो जाता है। हालाँकि, मोन्सैंटो भी यह दावा करता है कि राउन्डअप का इस्तेमाल कोई खतरा पैदा नहीं करता क्योंकि यह “ब्रेक डाउन” हो जाता है, लेकिन इससे निकलनेवाले रसायन बेहद जहरीले होते हैं। ऐसे कीटनाशकों और नशीली दवाओं का काफी लम्बा और पेचीदा इतिहास रहा है जिनके  दुष्प्रभाव बहुत कम होने या “सुरक्षित” होने का दावा किया जाता है पर बाद में उनके गम्भीर परिणाम नजर आते हैं। यूँ कहें कि क्यूबा द्वारा कीटों को नियंत्रित करने में इस्तेमाल किये गये विषैले तत्त्वों (जिसमें जैव–प्रौद्योगिकी के द्वारा विकसित विषैले तत्त्व शामिल हैं) को लेकर अभी कोई ठोस राय नहीं बन पायी है।

किसी भी देश को, किसी सम्भावित नकारात्मक व्यवहार के लिए नजरअन्दाज नहीं किया जाना चाहिए, फिर चाहे उसकी चिकित्सा नीतियों ने करोड़ों जिन्दगियों की रक्षा ही क्यों न की हो। हर नये सामाजिक और तकनीकी बदलाव को समीक्षा और मित्रवत आलोचना के लिए तैयार रहना चाहिए। क्यूबा ने साफ तौर पर कुछ गलतियाँ की हैं जिनसे सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता था। उसकी सभी गलतियों में सबसे बड़ी गलती रही उसका 1980 के दशक के दौरान एक नाभिकीय परमाणु संयंत्र की स्थापना करने का निर्णय। हालाँकि सोवियत संघ के पतन और उसके परिणामस्वरूप हुए पूँजी के अभाव में वह परियोजना सफल नहीं हो सकी। लेकिन यदि वह संयंत्र स्थापित हो जाता तो यह स्वास्थ्यप्रद नहीं होता। कम से कम बच्चों और द्वीप में रहनेवाले अन्य जीवों के लिए एक और चेर्नोबिल या फुकुशिमा का जोखिम उठाना ठीक नहीं होता। क्यूबा की एक और अफसोसजनक नीति रही है, उसका नशीले पदार्थ मारिजुआना के प्रति लगभग 1950 के दशक जैसा दृष्टिकोण। चूँकि यह खेती की लागत की दृष्टि से सबसे सस्ती वनस्पतियों में से एक है तथा इसके कई चिकित्सीय उपयोग हो सकते हैं, इसके चलते क्यूबा बहुत से कम–लागत के उपचारों में योगदान की दिशा में एक अवसर गँवा रहा है।

यह ठीक है कि हमें क्यूबा के इन समस्यामूलक निर्णयों को नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए, पर यह भी सही है कि इनके चलते वैश्विक स्वास्थ्य के प्रति इस देश के योगदान  की काफी हद तक नजरअन्दाज करके इन्हीं बातों पर अधिक जोर दे दिया जाता है। हैल्थकेयर विदाउट बॉडर्स में इस बात का सम्पूर्ण दस्तावेजीकरण है कि कैसे वे तकनीक के हस्तान्तरण और नवीन स्वास्थ्य प्रणालियों की परिकल्पना को समेटने के लिए चुनिंदा हस्तक्षेपों से ऊपर उठ जाते हैं। यह सब कॉरपोरेट जगत में दवाइयों की कीमत को लेकर हो रही चीजों से अलग कैसे है? उदाहरण के तौर पर, रोडेलिस कॉरपोरेशन ने दवा–रोधी टीबी से लड़ने के लिए उपलब्ध चुनिन्दा ऐंटीबायोटिक दवाओं में से एक साइक्लोसेरीन के अधिकार खरीद कर उसकी कीमत को 2000 गुणा बढ़ा दिया, जिससे अब इसके पूर्ण उपचार में 500,000 डॉलर की लागत आती है।

अकटूबर 2015 में यह प्रकाश में आया कि ट्रांस–पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) के अन्तर्गत दवा कम्पनियों के लिए पेटेंट सुरक्षा अवधि को बढ़ाकर 12 साल किया जा सकता है। इस दौरान इन ब्रांडों की दवाइयों के सस्ते जेनेरिक विकल्प नहीं बेचे जा सकेंगे। ऐसा होने से प्रशान्त पार के 12 देशों की साझेदारी (टीपीपी) में शामिल उन देशों के हजारों या शायद लाखों लोग जरूरी दवाएँ नहीं खरीद सकेंगे। ऐसे व्यापार समझौते केवल यही बयान करते हैं कि दवा कम्पनियों का सौहार्द और संवेदनशीलता वैसी ही है जैसी शार्कों के उस समूह की जो अभी–अभी शिकार पर टूट पड़ने के लिए तैयार हुए हैं। क्यूबा ने जो रास्ता तैयार किया है वह इस मुनाफे के लिए उत्पादन से एकदम उलट है।