परिचय
राजसत्ता के सम्बन्ध में लेनिन ने यह भाषण वाइ एम र्स्वदलोव कम्युनिस्ट महाविद्यालय में 1919 में दिया था। यह महाविद्यालय रूसी कम्युनिस्ट पार्टी के फैसले के आधार पर पार्टी कार्यकर्ताओं की उच्च शिक्षा के लिए 1918 में कायम किया गया था।
इस भाषण में लेनिन ने अत्यन्त सरल ढंग से बतलाया है कि राजसत्ता क्या है, समाज के विकास की किस मंजिल में वह पैदा हुई, क्यों पैदा हुई, उसके क्या काम हैं, उसके कितने रूप हैं और रूपों की इस विविधता के बावजूद किस प्रकार उसका सार–तत्व एक ही बना रहता है।
राजसत्ता के प्रश्न को शोषकों और विशेषकर पूँजीपतियों के प्रचारकों और ‘‘विद्वानों’’ ने बहुत पेचीदा बना दिया है जिससे कि उसकी वर्गीय शोषक और हिंसक असलियत पर पर्दा पड़ जाये। जैसा कि लेनिन ने स्वयं लिखा है, जितनी गलतफहमियाँ इन लोगों ने राजसत्ता के सम्बन्ध में फलायी हैं, उतनी किसी भी अन्य प्रश्न के सम्बन्ध में नहीं। इससे इस प्रश्न का महत्त्व भी स्पष्ट हो जाता है। वास्तव में, इस प्रश्न कोे समझे बिना किसी भी संजीदा विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता या क्रान्तिकारी का दृष्टिकोण साफ नहीं हो सकता, क्योंकि यह प्रश्न सारी राजनीति का, समस्त सामाजिक परिवर्तन का आधारभूत प्रश्न है।
इस गूढ़ और उलझे विषय की जितनी सरल व्याख्या लेनिन ने इस भाषण में की है उतनी और कहींं हमारे देखने में नहीं आयी। इसी व्याख्यान–माला में, इसी विषय पर, 29 अगस्त 1919 को लेनिन ने एक और भाषण दिया था, जो दुर्भाग्य से, अप्राप्य है। इस विषय पर उनकी क्लासिक पुस्तक राजसत्ता और क्रान्ति है। इस भाषण को पढ़ लेने के बाद उसका अध्ययन करना भी आसान हो जाएगा।
–– रमेश सिन्हा
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