अनुक्रम
रूसी संस्करण की भूमिका 5
समाजवाद और धर्म 7
रूसी क्रान्ति का दर्पण : लेव तोलस्तोय 13
धर्म के प्रति मजदूरों की पार्टी का दृष्टिकोण 19
धर्म और चर्च के प्रति विभिन्न वर्गों और पार्टियों का दृष्टिकोण 31
मैक्सिम गोर्की के नाम पत्र–1 41
मैक्सिम गोर्की के नाम पत्र–2 45
श्रमिक महिलाओं की प्रथम अखिल रूसी काँग्रेस 49
रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) के कार्यक्रम के मसौदे से 52
जुझारू भौतिकवाद का महत्त्व (एक अंश) 53
टिप्पणियाँ 64
नामों की अनुक्रमणिका 69
रूसी संस्करण की भूमिका
इस संकलन में सम्मिलित रचनाओं और भाषणों में लेनिन ने धर्म के सम्बन्ध में सर्वहारा पार्टी के कर्तव्यों की व्याख्या की है, धर्म के सामाजिक आधार का पूर्ण रूप से उद्घाटन किया हैय धर्म और विश्व–सम्बन्धी वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विरोध पर प्रकाश डाला हैय तथा यह बतलाया है कि धार्मिक पूर्वाग्रहों पर कैसे विजय पाई जा सकती है।
लेनिन का कहना है कि जनवाद के लिए संघर्ष में सर्वहारा पार्टी की बुनियादी माँगों में से एक यह है कि (लोगों को) अन्त:करण की स्वतंत्रता दी जाये, राज्य से चर्च को और चर्च से शिक्षा संस्थाओं को अलग कर दिया जाये। जहाँ तक राज्य का सम्बन्ध है धर्म को उसकी तरफ से व्यक्ति का निजी मामला घोषित कर दिया जाना चाहिए।
किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि सर्वहारा की पार्टी धर्म के प्रति उदासीन रह सकती है। लेनिन ने मार्क्स की इस प्रस्थापना को विकसित किया है कि सर्वहारा की पार्टी धर्म को व्यक्ति का निजी मामला नहीं मान सकती। सर्वहारा पार्टी का पूर्णत: वैज्ञानिक विश्व–दृष्टिकोण इस चीज को आवश्यक बना देता है कि धर्म के विरुद्ध (उसकी ओर से) अनमनीय और अडिग रूप से सैद्धान्तिक संघर्ष चलाया जाये।
लेनिन ने लिखा है कि,
‘‘जहाँ तक समाजवादी सर्वहारा की पार्टी का सम्बन्ध है, धर्म को किसी का निजी मामला नहीं माना जा सकता। हमारी पार्टी मजदूर वर्ग की मुक्ति के लिए लड़ने वाले वर्ग–चेतन, आगे बढ़े हुए योद्धाओं की एक संस्था है। ऐसी संस्था धार्मिक विश्वासों के रूप में मौजूद वर्ग–चेतना के अभाव, अज्ञान, अथवा रूढ़िवाद के प्रति न तो उदासीन रह सकती है, न उसे इसकी इजाजत ही है। हम चर्च के पूर्ण विघटन की माँग करते हैं, ताकि शुद्ध सैद्धान्तिक और पूर्णतया वैचारिक अस्त्रों से, अपने समाचार पत्रों और भाषणांें से धार्मिक कोहरे के विरुद्ध लड़ाई हम लड़ सकें। लेकिन अपनी संस्था रूसी सामाजिक–जनवादी मजदूर पार्टी की स्थापना हमने हर प्रकार के धार्मिक शोषण के विरुद्ध मजदूरों के ठीक ऐसे ही संघर्ष के लिए की है। हमारे लिए वैचारिक संघर्ष केवल एक निजी मामला नहीं है, वह सारी पार्टी का, पूरे सर्वहारा वर्ग का मामला है।’’
सोवियत संघ में समाजवाद की विजय और शोषक वर्गों के उन्मूलन से धर्म का सामाजिक आधार और चर्च का मुख्य अवलम्ब नष्ट हो गया है। मार्क्सवाद–लेनिनवाद के महान विचारों से पोषित सोवियत जनता आत्मिक रूप से पूर्णतया एक नये साँचे में ढल गयी है। फिर भी, पूँजीवाद के अवशेष, धार्मिक विचारधारा, पूर्वाग्रहों और अन्धविश्वासों के अवशेष, अब भी कुछ लोगों के दिमागों में बरकरार हैं और उनके सांस्कृतिक विकास तथा कम्युनिज्म के निर्माण में उनकी सक्रिय सहभागिता के मार्ग में बाधक बन रहे हैं। ये पूर्वाग्रह बहुत चीमड़ होते हैं, ये अपने आप समाप्त नहीं होंगे, इसलिए आवश्यक है कि उनके विरुद्ध अडिग संघर्ष चलाया जाये। कम्युनिस्ट पार्टी सोवियत जनता को वैज्ञानिक विश्व दृष्टिकोण में दीक्षित करती है और यह कहकर धर्म के विरुद्ध एक वैचारिक संघर्ष चलाती है कि वह सिद्धान्तत: अवैज्ञानिक है। धार्मिक पूर्वाग्रहों पर विजय पाना जनता के कम्युनिस्ट शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
लेनिन के ये लेख, जिनमें धर्म के मूल का उन्होंने पूरी तरह पर्दाफाश किया है तथा यह दिखलाया है कि धर्म पर कैसे विजय प्राप्त की जा सकती है, धार्मिक पूर्वाग्रहों के विरुद्ध संघर्ष का तथा वैज्ञानिक अनीश्वरवादी प्रचार का एक तेज वैचारिक अस्त्र है। लेनिन ने बताया है कि धार्मिक अवशेषों पर केवल धैर्यपूर्वक और दृढ़ विचारधारात्मक प्रशिक्षण के साथ–साथ मार्क्सवादी वैज्ञानिक विश्व–दृष्टिकोण के व्यापक प्रचार के द्वारा ही विजय पायी जा सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा था कि जनता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने की कतई इजाजत नहीं दी जा सकती है, क्योंकि उससे उसके पूर्वग्र्रहों को और बल ही मिलेगा।
इस पुस्तिका में सम्मिलित सामग्री कालक्रमानुसार दी गयी है।
--सोवियत संघ की कम्युनिस्ट
पार्टी की केन्द्रीय समिति का
मार्क्सवाद–लेनिनवाद संस्थान
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